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राजा और भगवान

संजय सिन्हा

आदमी राजा के पास गया था। संजय सिन्हा ने उसे राजा के पास भेजा था कि जाओ अपनी बात कहो। कहो कि तुम्हारा बेटा बेरोजगार है। उसे नौकरी चाहिए। तुम्हारी पत्नी बीमार है, उसे इलाज चाहिए। तुम बूढ़े हो गए हो, तुम्हें समाजिक सुरक्षा चाहिए।
वो मुझसे पूछने लगा, “संजय जी, क्या वाकई ऐसा हो सकता है?”“हां, ऐसा ही होना चाहिए। तुमने उसे राजा चुना है। तुम जीवन भर हाड़-तोड़ मेहनत करते रहे। तुमने अपनी कमाई से बड़ा हिस्सा उसे दिया है। तुम्हारा हक है कि तुम राजा से मांगो। उसने तुमसे वादा किया था कि तुम उसे राजा चुनोगे तो वो तुम्हें एक खुशहाल जीवन देगा। उसने खुद को तुम्हारा भगवान कहा था। तुमने उसे अपना भगवान माना है।”“हां, ये तो है। मैं उसे भगवान मानता हूं।”“फिर? तुमने उसे भगवान का दर्जा दिया इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है?”“संजय जी, अगर राजा ही भगवान हैं तो फिर भगवान कौन हैं? हम भगवान से सीधे कुछ नहीं मांग सकते क्या?”“बिल्कुल नहीं। तुम भगवान से सीधे कैसे मांग सकते हो? और जो भगवान से सीधे मांग ही सकते थे, वो तुम्हें सीधे दे ही देता, फिर किसी राजा की क्या ज़रूरत थी? राजा का क्या काम? वो किस बात के लिए तुम्हारी कमाई खाए?”
“आप कह तो ठीक ही रहे हैं। फिर वो मंदिर में रहने वाले भगवान? वो कौन हैं?”“वो राजा के भगवान हैं। क्योंकि तुम्हारे ऊपर राजा है तो राजा के ऊपर भी तो कोई होना ही चाहिए न? पंडितों ने भगवान को राजा के ऊपर किया। कहा कि राजन, तुम भगवान से प्राप्त करोगे। फिर तुम अपनी प्रजा को दोगे। एकदम ऐसे जैसे तुम्हारे इलाके में कानून व्यवस्था की ज़िम्मेदारी थानेदार की होती है, पुलिस अधीक्षक की नहीं। थानेदार सब ठीक करे ये देखने का काम पुलिस अधीक्षक का होता है। उसके ऊपर कई पोस्ट और होते हुए ये ज़िम्मेदारी पुलिस महानिदेशक तक पहुंचती है। फिर गृह मंत्री तक। अब तुम्हारे घर चोरी हो जाए तो तुम न पुलिस अधीक्षक के पास जाओगे, न गृह मंत्री के पास। तुम्हें जाना ही नहीं चाहिए। हां, थानेदार तुम्हारी शिकायत न सुने, ठीक काम न करे, तो तुम पुलिस अधीक्षक के पास जा सकते हो ये कहने कि हुजूर, आपके अंडर में ये थानेदार ठीक से काम नहीं कर रहा है। आप इसे सजा दें। इसे हटाएं। इसे बदलें।”“संजय जी, थोड़ा विस्तार से समझाइए। ठीक से पल्ले नहीं पड़ रहा।”

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“हर ज़िम्मेदार अधिकारी का एक क्षेत्र होता है। फिर उसके ऊपर उसके बॉस (भगवान) होते हैं। तुम्हारे हिस्से जो है, वो तुम्हारा भला करेगा। उसे ही करना चाहिए। एफआईआर के लिए गृह मंत्री तक नहीं जाना होता है। हां, गृह मंत्री से भी संपर्क कर सकते हो, पर उसके नीचे के सभी मातहतों की शिकायत के लिए। अगर तुम्हारे बेटे को राजा नौकरी नहीं दे रहा, अगर तुम्हारी पत्नी का इलाज राजा नहीं करवा रहा, अगर तुम्हारे बुढ़ापे में कोई सहारा वो नहीं प्रदान करा पा रहा तो तुम बेशक उसके ऊपर जाओ। तुम मंदिर जाओ, मस्जिद जाओ, गुरुद्वारा जाओ, चर्च जाओ। जाकर भगवान से गुहार लगाओ कि वो राजा को सजा दे। तुम उससे नया राजा मांगो, जो तुम्हारे दुख दूर करे न कि तुम उससे अपने दुख दूर करने की फरियाद करो। आदमी जब इस दुनिया में आया था तो उसे भगवान कहीं नहीं दिखे थे। भगवान की व्यवस्था की ही गई थी सर्वोच्च सत्ता के रूप में। मतलब राजा से ऊपर। राजा तुम्हारा भगवान है। मंदिर वाले राजा के भगवान ताकि वो निरंकुश न हो जाए, उसके मन में डर हो, उसके भगवान का।”“लेकिन संजय जी, कई लोगों ने कहा कि राजा खुद कुछ नहीं करते। सीधे अपने भगवान का पता बता देते हैं। कहते हैं उनसे मांगो।”“जब उन्हीं से मांगना है फिर राजा की क्या ज़रूरत भाई? तुम जाओ, उनसे पूछो कि क्या बेरोजगार बेटे को भगवान नौकरी देंगे? बीमार पत्नी का इलाज भगवान कराएंगे? तुम्हारे बुढ़ापे का खर्चा भगवान चलाएंगे? अगर जो वही चलाएंगे तो फिर आप बीच में कौन? क्यों? हम मकान खरीदते हैं, गाड़ी खरीदते हैं तो बीच में एक दलाल होता है, जो अपनी फीस लेता है और हमारे काम करता है। अगर हम सीधे सौदा करेंगे, फिर दलाल को किस बात के पैसे (टैक्स)? वो किस बात के लिए हवाई जहाज में घूमे? वो किस बात के लिए सात तालों वाले महल में रहे? उसे हमने चुना है अपना भगवान तो उसे ही हमारे काम करने होंगे। कोई बहाना नहीं चलेगा।”

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“संजय जी, ये तो प्राचीन काल से चला आ रहा है जब राजा निरंकुश हो जाता है तो प्रजा कुछ नहीं कर पाती है।”
“कैसे नहीं करती? प्रजा फिर हाहाकार करती है। मंदिर वाले भगवान के पास जाती है। उनसे राजा की शिकायत करती है। कहती है कि तुम सर्वोच्च हो, अब तुम देखो अपने मातहत को। पता है फिर आकाशवाणी होती है, भगवान प्रजा के भगवान से नाराज़ होते हैं। वो कहते हैं कि तुमने अपने हिस्से के काम को ठीक नहीं किया, इसलिए अब तुझे हटा कर हम लाइन हाजिर करेंगे। या फिर टर्मिनेट ही कर देंगे। नया भगवान भेजेंगे प्रजा के लिए। भगवान कई बार कह कर अपना काम करते हैं। जैसे द्वापर युग में उन्होंने राजा कंस के लिए ऐलान कर दिया था। टाइम फिक्स कर दिया था कि सुधर जाओ, नहीं तो अपना टर्म पूरा समझो। आने वाला है मेरा भेजा दूत, जिसे दुनिया भगवान कहेगी। याद है न भाई, वो आया था। लोगों की गुहार सुन कर ही आया था। भगवान ने उसे भेजा था। पर ऐसी नौबत आए ही क्यों? तुम अपने राजा (भगवान) से कहो कि तुम्हें हक है ठीक से जीने का। तुम लोगों ने उसे मिल कर चुना है अपनी बेहतरीन ज़िंदगी के लिए। तुम जाओ उससे अपनी बात कहो। नहीं सुने तो फिर मंदिरों की कोई कमी है क्या? जाओ ऊपर वाले से शिकायत कर दो। ध्यान रहे, तुम्हारी पहुंच बहुत आसान नहीं होगी। मुश्किलें आती हैं, समय लगता है। लेकिन ये भी तय है कि होता पूरा इलाज है। तुम भगवान से कुछ अपने लिए मत मांगना। तुम तो इतना ही कहना कि थानेदार नहीं सुन रहा एसपी साहब। कहीं आपकी शह तो नहीं? अगर आपकी शह है तो मैं आपके ऊपर भी जाऊंगा। तब तक जाता रहूंगा, जब तक मेरी सुन नहीं ली जाएगी। चाहे जितनी देर हो, पर अन्याय को दूर करना होगा।”
“क्या भगवान अन्याय दूर करेंगे?”

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“अगर हैं तो करेंगे। करना चाहिए। और अगर वो कुछ नहीं करते, फिर तुम आजाद हो अपनी जंग के लिए। फिर तुम पूछ सकते हो कहां हो भगवान? हो भी कि नहीं? कोई भविष्यवाणी करोगे कि केवल द्वापर युग तक ही सिमट कर रह गए? कब तक अतीत की कहानियों को जीता रहूं प्रभु? वर्तमान में भी तो सुनो। मेरी आपसे कोई व्यक्तिगत शिकायत नहीं। ये शिकायत है लाखों, करोड़ों लोगों की। उनकी शिकायत है उनके भगवान से। उस भगवान से जिसने आपके नाम पर शपथ लेकर ये कहा था कि वो अपनी प्रजा (आपके बंदों) की रक्षा करेगा। उनके हर दुख हरेगा।”
बस इतना ही।

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