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राजनीति

सीतामढ़ी में भाजपा नए प्रयोग की तैयारी में, डॉक्टर वरुण कुमार की इंट्री

मेराज नूरी

सीतामढ़ी जिला की राजनीति में नया समीकरण बनता हुआ दिखाई दे रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में तब एनडीए में शामिल जनता दल यूनाइटेड से लोकसभा का टिकट जिला के प्रसिद्ध डॉक्टर वरुण कुमार को दिया गया था। वरुण कुमार ने लव लश्कर के साथ चुनाव मैदान में उतरने की पूरी तैयारी कर ली थी लेकिन एक हफ्ते के अंदर ही वरुण कुमार ने जनता दल यूनाइटेड पर यह आरोप लगाते हुए कि ना तो नेतृत्व और ना ही कार्यकर्ता उनके साथ दे रहे हैं,नामांकन से पहले अपना टिकट पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लौटा दिया था।चूंकि उसे वक्त जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन था इसलिए एक मजबूत उम्मीदवार के तौर पर जनता दल यूनाइटेड ने अपनी साथी पार्टी भारतीय जनता पार्टी से सीतामढ़ी के भाजपा पूर्व विधायक सुनील कुमार पिंटू को आनन फानन या यूं कहें कि भाजपा के कहने पर अपनी पार्टी में शामिल कराकर सीतामढ़ी लोकसभा का उम्मीदवार घोषित कर दिया। सुनील कुमार पिंटू 2019 का चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंच गए।दो तीन साल तो सब ठीक रहा लेकिन पिछले साल राज्य की सियासत ने करवट बदली और जनता दल यूनाइटेड ने एनडीए गठबंधन से नाता तोड़ते हुए महागठबंधन का दामन थामा और राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और वाम दलों के साथ नई सरकार का गठन कर लिया।ये दरअसल विधानसभा चुनाव 2020 में जनता दल यूनाइटेड को आशा के अनुसार सीट न मिल पाने के कारण भारतीय जनता पार्टी के बड़े भाई बनने के मनोवैज्ञानिक दबाव के कारण हुआ। क्योंकि जब 2020 में बिहार विधानसभा के चुनाव हुए तो जनता दल यूनाइटेड को भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले कम सीटों पर जीत हासिल हुई। इसके कारण कई है जिसमें एक कारण जो महत्वपूर्ण बताया जाता है वह यह कि भारतीय जनता पार्टी ने पीठ पीछे षड्यंत्र करके जनता दल यूनाइटेड और नीतीश कुमार को कमजोर करने की साजिश की।आरोप लगा कि साजिश के तहत ही भारतीय जनता पार्टी ने लोक जनशक्ति पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान को पीछे से सपोर्ट देकर नीतीश कुमार को कमजोर करने के लिए राज्य की विधानसभा चुनाव में अलग लड़वाया। चिराग पासवान की पार्टी ने बहुत सारी सीटों पर भारतीय जनता पार्टी को तो फायदा पहुंचाया लेकिन जनता दल यूनाइटेड को कई सीटों पर भारी नुकसान का सामना करना पड़ा जिसकी वजह से जनता दल यूनाइटेड को विधानसभा चुनाव 2020 में काम सीट मिली।

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हालांकि चिराग पासवान के द्वारा 2020 के विधानसभा चुनाव में किए गए खेल का नीतीश कुमार ने फौरन ही बदला तो ले लिया लेकिन भारतीय जनता पार्टी के द्वारा ज्यादा सीटों की वजह से पड़ने वाले मनोवैज्ञानिक दबाव को वह ज्यादा दिनों तक नहीं झेल पाए और एनडीए गठबंधन से नाता तोड़कर महागठबंधन के साथ मिल गए और सरकार बना ली। नीतीश कुमार ने उस चोट का बदला लेते हुए चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को दो फाड़ करने में भी अपनी अहम भूमिका। यही वजह है कि आज चिराग पासवान की पार्टी टूट कर दो पार्टी बन गई। एक की कमान चिराग पासवान के हाथ में है जबकि दूसरे की कमान चिराग पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस के पास है। हालांकि अभी दोनों धारे एनडीए में है।

 

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4 वर्षों तक सब कुछ ठीक-ठाक रहा। 2024 के लोकसभा चुनाव से पूर्व सांसद सुनील कुमार पिंटू के सुर बदलने लगे। वजह राज्य में हुई जाति आधारित गणना बनी। सांसद सुनील कुमार पिंटू ने मोर्चा खोलते हुए अपनी ही पार्टी जनता दल यूनाइटेड के खिलाफ बयान बाजी शुरू कर दी। हालांकि जाति आधारित गणना का क्रेडिट भारतीय जनता पार्टी भी लेती है लेकिन भारतीय जनता पार्टी के पूर्व विधायक और वर्तमान में जनता दल यूनाइटेड के सांसद सुनील कुमार पिंटू ने जाति आधारित गणना के बहाने न सिर्फ अपनी पार्टी जनता दल यूनाइटेड को कटघरे में खड़ा करना शुरू किया बल्कि कई सवाल भी उठाए। नतीजा यह हुआ कि जनता दल यूनाइटेड ने उन्हें जमीर का सौदा करके राजनीतिक न करने तक की सलाह दे डाली। यानी सुनील कुमार पिंटू हाशिए पर धकेले जाने लगे।जनता दल यूनाइटेड ने तो यहां तक इल्जाम लगा दिया कि दरअसल सुनील कुमार पिंटू भारतीय जनता पार्टी की गोद में खेल रहे हैं और अपना भाजपा प्रेम दिखाने से परहेज नहीं कर रहे हैं। जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने साफ साफ शब्दों में कहा कि सुनील कुमार पिंटू यदि अपने को बोरो प्लेयर मानते हैं तो ओरिजिनल टीम के कप्तान से हिम्मत करके कहिए कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने पिछड़ी जाति के कक्षा एक से आठ तक की छात्रवृत्ति को क्यों बंद कर दिया है। हिम्मत करके जुबान खोलिए। यदि जातिगत सर्वे से संतुष्ट नहीं है तो केंद्र सरकार से कहिए जातिगत जनगणना करवाये।एक अदद टिकट के लिए अपने समाज की राजनीतिक जमीन नहीं बेचनी चाहिए।एक कदम आगे बढ़ते हुए जल संसाधन मंत्री संजय झा ने कहा था कि वह जहां से गाइड हो रहे हैं वहीं से जातीय गणना का सर्वे कर लें। जब जनगणना होगी तो उसमें कास्ट का कॉलम भी जुड़वा दें और जब रिपोर्ट आ जाएगी तो मिला लेंगे क्या सही है क्या गलत। उनका इशारा भाजपा की ओर था।

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हालांकि ये तो सुनील कुमार पिंटू ही जानते होंगे कि जाति आधारित गणना पर सवाल उठाकर वह क्या हासिल करना चाहते हैं लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह बात स्पष्ट हो चुकी कि सांसद सुनील कुमार पिंटू भाजपा की भाषा बोल रहे हैं। यही वजह थी कि बयान आने के बाद जनता दल यूनाइटेड ने ताबड़तोड़ हमले शुरू कर दिए और यह साबित करने की कोशिश की कि दरअसल सुनील कुमार पिंटू कामू जनता दल यूनाइटेड से भंग हो चुका है और वह अपनी पुरानी पार्टी भारतीय जनता पार्टी में ही अपना भविष्य देख रहे हैं।हालांकि एक दिन पूर्व ही सांसद सुनील कुमार पिंटू कहा कि वे मुख्यमंत्री के एहसानमंद हैं कि जदयू में नहीं रहते हुए भी उन्हें बुलाकर टिकट दिया था।सासंद ने दावा किया है कि जदयू में बहुत उम्मीदवार थे, लेकिन सीएम नीतीश कुमार ने उन्हें चुना।उन्होंने कहा कि उनके बारे में सीएम नीतीश कुमार के अलावा कोई दूसरा फैसला नहीं ले सकता है।

 

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दरअसल वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में सीतामढ़ी लोकसभा क्षेत्र गठबंधन के तहत पूरी संभावना है कि राष्ट्रीय जनता दल के कोटे में चली जाए। क्योंकि इससे पहले भी सीतामढ़ी लोकसभा क्षेत्र पर जनता दल,राजद चुनाव लड़ता आया है। 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर ऐसी पूरी संभावना है कि सीतामढ़ी लोकसभा क्षेत्र एक बार फिर महागठबंधन की बड़ी पार्टी राजद के कोटे में जाएगी। अगर ऐसा होता है तो सुनील कुमार पिंटू के बजाय महागठबंधन अपने नेताओं को उतारने की कोशिश करेगा। जाहिर है सुनील कुमार पिंटू को अपना भविष्य अंधकारमय दिखने लगा था जिसका इजहार उन्होंने जातिगत गणना पर सवाल उठाकर कर दिया।

 

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ख़ैर जो भी हो, सुनील कुमार पिंटू ने चाहे भारतीय जनता पार्टी के प्रेम में ऐसा किया हो या फिर अपना भविष्य भारतीय जनता पार्टी में ही देख रहे थे यह वह जानें लेकिन ताजा घटनाक्रम से भारतीय जनता पार्टी के पूर्व विधायक और वर्तमान में जनता दल यूनाइटेड के सांसद सुनील कुमार पिंटू को जबरदस्त झटका लगता हुआ दिखाई दे रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि एक तरफ जहां जनता दल यूनाइटेड ने सुनील कुमार पिंटू को दरकिनार कर दिया है वहीं अब भारतीय जनता पार्टी ने भी सुनील कुमार पिंटू को जोर का झटका देने की तैयारी कर ली है। अर्थात भारतीय जनता पार्टी ने सीतामढ़ी लोकसभा क्षेत्र में अपने कुनबे को बढ़ाते हुए 2019 में जनता दल यूनाइटेड का टिकट हासिल करने वाले नंदीपत हॉस्पिटल के मालिक डॉक्टर वरुण कुमार और उनकी पत्नी स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर श्वेता को पार्टी में शामिल करने का फैसला किया है।डॉक्टर वरुण कुमार ने अपनी पत्नी के साथ 17 अक्टूबर 2023 को पटना में पार्टी कार्यालय में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी और अन्य वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति में भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया।वरुण कुमार समेत पूरी भारतीय जनता पार्टी इसको एक अवसर के तौर पर देख रही है। यानी जनता दल यूनाइटेड के वर्तमान सांसद सुनील कुमार पिंटू ना घर के रहे और नहीं घाट के। क्योंकि वरुण कुमार और उनकी पत्नी के भारतीय जनता पार्टी के शामिल होने मात्र से ही सुनील कुमार पिंटू का टिकट कटना निश्चित है।ऐसा इस लिए क्योंकि डॉक्टरी के पैसे में सीतामढ़ी जिला में अपना नाम कमाने वाले डॉक्टर वरुण कुमार पिछले कुछ सालों से राजनीति में अपनी पैठ जमाना चाहते हैं। यही कारण था कि 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने सबको चौंकाते हुए जनता दल यूनाइटेड से लोकसभा का टिकट हासिल कर लिया था। बदकिस्मती रही की उस वक्त उनका राजनीति के 3–5 से ज्यादा परिचय नहीं था जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा और टिकट लौटाने पर मजबूर होना पड़ा। लेकिन भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की खबरे के बाद यह बात पक्की हो चुकी है कि डॉक्टर वरुण कुमार अब खुद को राजनीति में परिपक्व मान चुके हैं और पूरी ताकत के साथ मैदान में उतरने को बेताब हैं।शहर के रिंग बांध स्थित नंदीपत मेमोरियल हॉस्पीटल एंड रिसर्च सेंटर के संचालक डॉ. वरुण कुमार की पहचान सीतामढ़ी समेत उत्तर बिहार के चिकित्सा जगत में है।

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राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इन 5 सालों के दौरान जाहिर है डॉक्टर वरुण कुमार ने राजनीति के गुणा भाग को अच्छी तरह समझा तभी उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के साथ जाने का फैसला लिया है। क्योंकि डॉ वरुण कुमार भी जानते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में लाख चाहने के बावजूद जनता दल यूनाइटेड उनको लोकसभा का टिकट नहीं दे सकती।राजद का तो कोई सवाल ही नहीं उठता क्योंकि सीतामढ़ी लोकसभा क्षेत्र में राजद के कई वरिष्ठ नेता दौड़ में शामिल है। ऐसे में डॉक्टर वरुण कुमार को भारतीय जनता पार्टी में अपना भविष्य उज्जवल होता हुआ दिखाई पड़ा है। और यह हकीकत भी है कि फिलहाल सीतामढ़ी लोकसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी को डॉक्टर वरुण कुमार से मजबूत उम्मीदवार मिलता हुआ दिखाई नहीं पड़ रहा है। शायद यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी ने अपने पूर्व विधायक सुनील कुमार पिंटू को दरकिनार करते हुए यह फैसला लिया। अब ऐसे में सीतामढ़ी लोकसभा क्षेत्र की राजनीति में भविष्य में नया आयाम देखने को मिलेगा जिसमें पूरी संभावना है कि भारतीय जनता पार्टी या तो वरुण कुमार को लोकसभा प्रत्याशी बनाएगी या फिर उनकी पत्नी को। लेकिन इतना तो तय है कि सीतामढ़ी लोकसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी का नया चेहरा इन्हीं दोनों में से कोई होंगे जिनका मुकाबला महागठबंधन के उम्मीदवार से होगा।और ये संभवतः पहली बार होगा जब शायद भाजपा अपना उम्मीदवार उतारे क्योंकि बिहार में लोकसभा की 10 सीटें ऐसी रही हैं, जिनपर भाजपा ने कभी कोई उम्मीदवार उतारा ही नहीं है। इन्हीं 10 सीटों में से एक है सीतामढ़ी लोकसभा सीट। यहां अभी तक आजादी के बाद से 16 चुनाव हुए हैं। लेकिन भाजपा के सिम्बल पर कोई उम्मीदवार सीतामढ़ी लोकसभा क्षेत्र से चुनावी मैदान में नहीं उतरा। हालांकि यह बात अलग है कि सीतामढ़ी के मौजूदा सांसद सुनील कुमार पिंटू एक वक्त में भाजपा के ही विधायक थे और भाजपा कोटे से ही नीतीश कुमार की अगुवाई वाली बिहार की एनडीए सरकार में पर्यटन मंत्री थे। लेकिन 2019 में कुछ ऐसा हुआ कि सुनील कुमार पिंटू जदयू के टिकट पर चुनाव लड़े और सांसद बने।सीतामढ़ी लोकसभा सीट पर आजादी के बाद से अब तक कुल 16 चुनाव हुए हैं। इसमें सबसे अधिक पांच बार इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। कांग्रेस के उम्मीदवार सीतामढ़ी सीट पर 1957 से 1984 के बीच 5 बार जीते हैं। जबकि राजद और जदयू के उम्मीदवारों के खाते में 2-2 बार यह सीट गई है। पिछले तीन चुनावों में उसी उम्मीदवार को जीत मिली है, जिसे भाजपा का समर्थन मिला है। तीन चुनावों में दो बार जदयू के उम्मीदवार जीते हैं। लेकिन 2014 में जदयू ने जब भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ा था तो भाजपा की सहयोगी पार्टी रालोसपा के उम्मीदवार रामकुमार शर्मा को इस सीट से जीत मिली थी।

 

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मौजूदा स्थिति में सीतामढ़ी लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले छह विधानसभा सीटों में से तीन में भाजपा के विधायक हैं। वैसे तो 2020 में जिस दलीय स्थिति में चुनाव हुआ था, उसके मुताबिक तो एनडीए ने पांच सीटें जीती थी। लेकिन चूंकि अब जदयू महागठबंधन में है, इसलिए उसके दो और राजद के एक विधायक को जोड़कर महागठबंधन के पास भी तीन विधायक हैं। वहीं लोकसभा चुनाव की बात करें तो राजद के लिए यह सीट उत्साहजनक नहीं रही है। राजद के सिम्बल पर इस सीट से सीताराम यादव ने 1998 और 2004 में जीत दर्ज की थी। इसके बाद 2009 में जदयू के अर्जुन राय इस सीट से सांसद बने। 2014 के चुनाव में सीताराम यादव ने राजद से चुनाव लड़ा, हार गए। 2009 में जीतने वाले जदयू के अर्जुन राय 2014 में तीसरे स्थान पर रहे थे। 2019 में अर्जुन राय ने राजद से चुनाव लड़ा लेकिन हार ही मिली।

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कुल मिलाकर राज्य की नई राजनीतिक परिदृश्य में 2014 के लोकसभा चुनाव में जीत किसे मिलती है और हार का मुंह कौन देखता है यह तो आने वाला 2024 का लोकसभा चुनाव ही बताएगा लेकिन फिलहाल भारतीय जनता पार्टी ने अपने पूर्व विधायक सुनील कुमार पिंटू को जबरदस्त झटका देने के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी ने एक मजबूत उम्मीदवार की खोज करके अपने बल पर या भारतीय जनता पार्टी के चुनाव चिन्ह पर प्रत्याशी उतारने की प्रबल संभावनाओं को जन्म दे दिया है। अगर ऐसा होता है कि वरुण कुमार या उनकी पत्नी 2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ती हैं तो यह मिथक भी टूट जाएगा की आजादी के बाद से आज तक सीतामढ़ी लोकसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनाव चिन्ह पर कभी कोई उम्मीदवार नहीं उतारा।

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