खगड़िया लोकसभा क्षेत्र में इस बार और भी दिलचस्प मुकाबला होगा। यह दिलचस्प मुकाबला चुनाव में जनता के बीच जाने से पहले टिकट लेने के समय होगा। यहां से पिछले दो बार से राजग समर्थित लोक जनशक्ति पार्टी के चौधरी महबूब अली कैसर सांसद हैं। राम विलास पासवान की मौत के बाद पार्टी के दो फाड़ होने से महबूब अली कैसर पशुपति पारस गुट में चले गए। इस कारण माना जाता है कि चौधरी महबूब अली कैसर और राम विलास पासवान के बेटे तथा लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान में और भी दूरी बढ़ गई है। उधर राजग का नेतृत्व कर रही भाजपा अभी तक यह तय नहीं कर पाई है कि वह पारस और चिराग दोनों को साथ रखेगी या फिर उन्हें एक जुट होने के लिए कहेगी। लोक जनशक्ति पार्टी के चचा भतीजा दोनों नेताओं के फिर से एक साथ हो जाने से भाजपा को राजनीतिक नुकसान भी हो सकता है। क्योंकि तब लोक जनशक्ति पार्टी अधिक मजबूत हो जाएगी और भाजपा कभी कभी अपने सहयोगी दल को मजबूत होते नहीं देखना चाहेगी।
लोक जनशक्ति पार्टी के दो फाड़ होने से मौजूदा सांसद चौधरी महबूब अली कैसर को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। चिराग पासवान का साथ छोड़ने से अब चौधरी महबूब अली कैसर को लोक जनशक्ति पार्टी के एक जुट हो जाने पर भी टिकट मिलने की संभावना नहीं के बराबर है। खगड़िया लोकसभा क्षेत्र की राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को याद होगा कि 2019 के लोक सभा चुनाव में चौधरी महबूब अली कैसर को अंतिम समय में लोक जनशक्ति पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया था। चौधरी महबूब अली कैसर उस समय भी खगड़िया लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। उस समय यह बात मीडिया और सियासी गलियारों में यह बात बहुत प्रमुखता से कही जा रही थी कि चिराग पासवान के विरोध के बावजूद राम विलास पासवान ने अपने पुराने रिश्तों को निभाते हुए चौधरी महबूब अली कैसर को पार्टी का उम्मीदवार बनाया था। वैसे भी चिराग पासवान जिस तरह भाजपा के पदचिह्न पर चलते हुए राजनीतिक कदम उठाते रहे हैं, उससे भी अंदाजा लगाना आसान है कि वह केवल मजबूरी ही में किसी मुस्लिम नेता को उम्मीदवार बनाएंगे।
लेकिन बात केवल लोक जनशक्ति पार्टी के दो फाड़ होने की नहीं है। अभी विकासशील इंसान पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने भी अपना पत्ता नहीं खोला है। पिछले लोक सभा चुनाव में वह राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन में थे। खगड़िया लोकसभा क्षेत्र में वह दूसरे नंबर पर रहे थे। चौधरी महबूब अली कैसर ने उन्हें दो लाख से अधिक मतों से हराया था। उससे पहले यानि 2014 के लोक सभा चुनाव में चौधरी महबूब अली कैसर ने राजद उम्मीदवार कृष्णा यादव को हराया था। कृष्णा यादव और उनके पति पूर्व विधायक रणवीर यादव को रंगदारी के एक पुराने मामले में तीन साल की सजा हुई है। इससे उनका चुनाव लड़ना मुश्किल हो गया है। क्योंकि चुनाव से पहले इस केस में ऊपरी अदालत का फैसला आने की संभावना कम ही दिखाई पड़ती है।
इस घटना को चौधरी महबूब अली कैसर के लिए राहत की बात कह सकते हैं। राजनीतिक गलियारों में 2019 के चुनाव के समय से भी अधिक यह बात कही जा रही है कि चौधरी जी महागठबंधन या फिर यूं कहें इंडिया गठबंधन में आने का जुगाड़ लगा रहे हैं। इस साल जुलाई में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से चौधरी महबूब अली कैसर की मुलाकात को इसी संदर्भ में देखा जा रहा है। वैसे भी उनके बेटे और सिमरी बख्तियारपुर से राजद विधायक यूसुफ सलाहउद्दीन के रूप में उनके लिए महागठबंधन का एक दरवाजा पहले से खुला हुआ है।