पटना:नालंदा लोकसभा क्षेत्र में वैसे तो सातवें चरण में चुनाव है, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह जिला होने के चलते यहां चुनावी रण अभी से खास बना हुआ है। एक जमाने में कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) का गढ़ रहे इस क्षेत्र की विशेषता यह है कि 1996 से लगातार हुए आम चुनाव और एक उपचुनाव में नालंदा की जनता ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से आगे नहीं सोचा है। नीतीश कुमार के इस गढ़ में उन्हीं की पार्टी के उम्मीदवार आठ आम चुनाव से जीतते रहे हैं। ऐसे में यहां पर महागठबंधन के भाकपा माले उम्मीदवार संदीप सौरव के लिए बड़ी अग्निपरीक्षा है। इस परीक्षा में वे कितने अंक ला पाएंगे, यह तो चुनाव परिणाम बताएगा, लेकिन एनडीए के जदयू प्रत्याशी कौशलेन्द्र कुमार की जीत में सबसे बड़ा सहारा नीतीश कुमार का नाम ही है।
नालंदा के लोगों का कहना है कि खेत-खलिहान में गेहूं की दौनी हो चुकी है। लेकिन, लोगों के बीच चुनावी चर्चा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से इतर कोई बात नहीं होती है। यही चर्चा मतदान के दिन वोट के रूप में गिरेगा। नीतीश कुमार के काम पर वोट करेंगे। नालंदा जिले के विकास में नीतीश सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। उनका काम हर गांव-टोले में बोल रहा है।लोगों का कहना है कि महागठबंधन का उम्मीदवार तो बाहरी है, जो शायद ही जनता को स्वीकार्य हो। बहरहाल, एनडीए के जदयू उम्मीदवार की जनसरोकार शैली खासी चर्चा में है तो वहीं महागठबंधन के संदीप सौरव भी मुकाबले में बने रहने के लिए जोर लगाए हैं।
एक जमाने में नालंदा लोकसभा क्षेत्र पर कांग्रेस व भाकपा का कब्जा रहा। लेकिन, 1996 के आम चुनाव से यहां से नीतीश कुमार की पार्टी ने जीत दर्ज की और पिछले 28 वर्षों से नीतीश कुमार की पार्टी के ही उम्मीदवार जीते। 1952 के पहले आम चुनाव में पटना सेंट्रल लोकसभा क्षेत्र का नालंदा हिस्सा था। तब कांग्रेस के उम्मीदवार कैलाशपति सिन्हा यहां से जीते थे। इसके बाद 1957 में नालंदा लोकसभा क्षेत्र बना। तब भी कांग्रेस के कैलाशपति सिन्हा ही जीते। फिर 1962, 1967 और 1971 के आम चुनाव में कांग्रेस के सिद्धेश्वर प्रसाद यहां से जीतते रहे। कांग्रेस की जीत के इस सिलसिले को वर्ष 1977 के आम चुनाव में जनता पार्टी के उम्मीदवार वीरेंद्र प्रसाद ने रोका। फिर 1980 और 1984 में भाकपा के विजय कुमार यादव यहां से जीते। 1989 में पुन: कांग्रेस के टिकट पर रामस्वरूप प्रसाद और 1991 में भाकपा के विजय कुमार यादव को नालंदा से सफलता मिली। इसके बाद कांग्रेस और भाकपा अपने कमजोर संगठन और खोए जनाधार के चलते यहां पैर नहीं जमा सकी।
जनता दल से अलग होकर 1994 में जार्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार ने समता पार्टी का गठन किया। इसके बाद 1996 के आम चुनाव में समता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में जार्ज फर्नांडिस नालंदा से चुनाव लड़े और जीते। फिर समता पार्टी के टिकट से ही जार्ज फर्नांडिस 1998 में नालंदा से जीते। जबकि 1999 के आम चुनाव में जदयू के टिकट से वह संसद पहुंचे। वर्ष 2004 में नीतीश कुमार जदयू के टिकट से जीते। इसके बाद 2006 में यहां लोकसभा का उपचुनाव हुआ और जदयू के टिकट से रामस्वरूप प्रसाद जीते। जदयू की जीत का यह सिलसिला लगातार जारी रहा। जदयू की टिकट से कौशलेन्द्र कुमार वर्ष 2009, 2014 और 2019 में नालंदा से चुनाव जीते। इस बार के आम चुनाव में जदयू ने चौथी बार कौशलेन्द्र कुमार को उम्मीदवार बनाया है, जिनके विरुद्ध महागठबंधन के भाकपा माले उम्मीदवार संदीप सौरव खड़े हैं।