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राजनीति

बेगूसराय महापंचायत और भाजपा

मेराज एम एन 

बिहार में 5 नवंबर को एक तरफ बेगूसराय में भूमिहार ब्राह्मण एकता मंच के द्वारा समाज को एकजुट करने के लिए बड़ा आयोजन हो रहा है तो दूसरी ओर उसी दिन बेगूसराय से सटे मुजफ्फरपुर में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रैली रखी गई है। यानि एक दिन में दो रैली भाजपा और उसके परंपरागत वोट बैंक भूमिहार ब्राह्मण के दरमियान बढ़ती दूरी को बयान करने के लिए काफी है।अगर बात बेगूसराय रैली की करें तो इस रैली का आह्वान भूमिहार ब्राह्मण एकता मंच और राष्ट्रीय जन जन पार्टी के नेता आशुतोष कुमार के द्वारा किया गया था।विगत 9 जून को ही राष्ट्रीय जन जन पार्टी के कार्यकारिणी सदस्यों की बैठक के समय आई एम ए हॉल पटना के सभागार में आशुतोष कुमार ने बताया था कि नवम्बर और दिसम्बर 2023 में बिहार के बेगूसराय, महाराजगंज, जहानाबाद, हाजीपुर, नवादा, समस्तीपुर जैसे लोकसभा क्षेत्रों में विशाल भूमिहार ब्राह्मण महापंचायत का भी आयोजन किया जाएगा। उसके बाद फरवरी 2024 में दिल्ली के रामलीला मैदान में लाखों की संख्या में भूमिहार, त्यागी और ब्राह्मणों का जुटान होगा। आशुतोष कुमार ने आगे कहा था कि समाज को मजबूत और एकजुट करने के लिए आने वाले दिनों में 2024 से पहले भूमिहार ब्राह्मण एकता मंच फाउंडेशन के बैनर से बिहार, यूपी और दिल्ली में कई बड़े सम्मेलनों का आयोजन किया जायेगा। दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर देखने को मिल रही गतिविधियों से भी पता चलता है कि इस रैली की घोषणा बहुत पहले की गई है।रैली को सफल बनाने के लिए मंच से जुड़े लोग पहले से सक्रिय दिखाई दे रहे हैं।जबकि भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और गृह मंत्री अमित शाह की रैली का प्लान बाद में बनाया गया है।अर्थात कहीं न कहीं कोई न कोई बात जरूर है जिसकी वजह से भाजपा नेता अमित शाह का मुजफ्फरपुर में उसी दिन रैली का प्रोग्राम रखा गया जिस दिन भाजपा के परंपरागत वोट बैंक भूमिहार ब्राह्मण भी अपने समाज को एकजुट दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।

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बात अगर भूमिहार ब्राह्मण एकता मंच के कर्ताधर्ता आशुतोष कुमार की करें तो मौजूदा वक्त में बिहार में स्वर्ण समाज में उनका कद भाजपा से कहीं ज्यादा ऊपर उठ चुका है।बिहार के भूमिहार ब्राह्मणों में उनकी गिरफ्त काफी मजबूत दिखाई देती है।विशेषकर स्वर्ण समाज के नौजवानों के लिए वो किसी हीरो से कम नहीं हैं।इसकी वजह भी है। दरअसल आशुतोष कुमार स्वर्ण समाज के उन ज्वलंत मुद्दों के साथ सामाजिक और राजनीतिक उत्थान की बात के साथ आगे बढ़ रहे हैं जो आज की जरूरत भी है और आज के परिपेक्ष में जरूरी भी।आशुतोष कुमार का मानना है कि आजादी के बाद बिहार भारत का सबसे विकासशील राज्य था लेकिन हमारी सरकारें कौशल से परिपूर्ण युवाओं के लिए बिहार में कोई सुविधा मुहैया नहीं कराती है और टूट-फूट, जातिवाद की राजनीति से अपनी रोटी सेंकती है। इस पर अब अंकुश लगाने की जरूरत है। बिहार को विकसित राज्य की श्रेणी में लाने,छोटे-बड़े उद्योग धंधे स्थापित करके औद्योगिक क्रांति की ओर कदम बढ़ा कर स्वर्णिम बिहार का सपना साकार किया जा सकता है।युवा,बेरोजगार, किसान और मजदूर को साथ लेकर जातिवाद और तुष्टीकरण से उठकर विकासवाद पर काम करने से ही काम चलेगा न कि परंपरागत वोट बैंक बनकर या फिर मुद्दा विहीन राजनीति के सहारे।हालांकि कई एक अवसर पर आशुतोष कुमार महज भूमिहार ब्राह्मण समेत स्वर्णों की बात करते हुए सेलेक्टिव राजनीतिक स्टैंड लेते दिखाई देते हैं।आशुतोष कुमार ने एक पार्टी का भी गठन किया है जो राष्ट्रीय जनजन पार्टी के तौर पर बिहार में सक्रिय है।स्वर्ण समाज के लोगों का आशुतोष कुमार के प्रति लगाव इस लिए भी ज्यादा प्रतीत होता है क्योंकि समाज के लोगों के दुख दर्द में वो स्वर्ण समाज की राजनीति और समाज को वोट बैंक मानने वाली राजनीतिक पार्टियों से ज्यादा तत्परता के साथ खड़े होते हैं।

 

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अब ऐसे में बेगूसराय में भूमिहार ब्राह्मण एकता मंच की महापंचायत के दिन ही भारतीय जनता पार्टी के द्वारा मुजफ्फरपुर में सम्मेलन करने और उसमें केंद्रीय गृहमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह की शिरकत बड़े सवाल खड़े करती है। कायदे से होना तो यह चाहिए था कि गृहमंत्री अमित शाह को बेगूसराय की महापंचायत में शामिल होकर अपने परंपरागत वोट बैंक को मजबूत करते लेकिन उसे दिन ही अलग रैली करके भाजपा क्या साबित करना चाहती है यह तो वह वह जानती है लेकिन राजनीतिक हल्का में यह बात अब पूरी तरह तैरने लगी है कि बिहार में भाजपा का परंपरागत वोट बैंक भी अब की सकता नजर आ रहा है। अब बिहार में भी स्वर्ण और भारतीय जनता पार्टी के बीच खाई लंबी होती जा रही है। इसका असर लोकसभा चुनाव 2024 पर क्या पड़ता है यह तो आने वाला समय बताएगा लेकिन फिलहाल बिहार की राजनीति में नए आयाम देखने को मिल रहे हैं।

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दूसरी ओर मुजफ्फरपुर में होने वाली भारतीय जनता पार्टी की रैली को लेकर भूमिहार ब्राह्मण समाज में नाराजगी भी देखी जा रही है। इस समाज का साफ मानना है कि बेगूसराय की रैली को कमजोर करने के लिए ही आनन फानन में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की रैली का आयोजन मुजफ्फरपुर में किया गया है। उनका मानना है कि मुजफ्फरपुर में केंद्रीय गृहमंत्री की रैली का आयोजन बेगूसराय में समाज की एकता के प्रदर्शन को कमजोर करने के लिए किया गया है ताकि उस रैली से निकलने वाले राजनीतिक संदेश से भाजपा को नुकसान न पहुंच पाए।

 

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हालांकि अगर बात स्वर्णो और भारतीय जनता पार्टी के बीच बढ़ती दूरी की की जाए तो यह बात पिछले कुछ दिनों से नजर भी आ रही है क्योंकि बिहार भाजपा ने अपने परंपरागत वोट बैंक को दरकिनार करते हुए एक तरफ भारतीय जनता पार्टी के बिहार प्रदेश की कमान तो दूसरी तरफ विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी भी स्वर्ण से अलग दूसरे समाज में बांट दी है। ऐसे में हो सकता है कि बिहार का स्वर्ण समाज यह महसूस करने लगा हो कि भारतीय जनता पार्टी स्वर्ण को वह तवज्जो नहीं दे रही है जो मिलनी चाहिए। ऐसा इसलिए भी क्योंकि 5 तारीख की मुजफ्फरपुर और बेगूसराय की रैलियां में शामिल होने के लिए जो होड़ लगी है वह बेगूसराय की ज्यादा प्रतीत होती है। सोशल मीडिया से लेकर मेन स्ट्रीम मीडिया तक बेगूसराय की रैली की चर्चा कर रहा है। अब देखने वाली बात यह होगी कि 5 नवंबर को मुजफ्फरपुर में गृहमंत्री अमित शाह कौन सा दाव खेलते हैं या कौन सा पासा फेंकते और बेगूसराय से कौन सा राजनीतिक संदेश निकलकर सामने आता है।

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