सुप्रीम कोर्ट ने जबरन एसिड पिलाने वाले आरोपियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए कहा है कि इस तरह के जघन्य अपराधों में हत्या के प्रयास की धारा के तहत ही मुकदमा चलाया जाना चाहिए। अदालत ने टिप्पणी की कि एसिड पिलाने की घटना सामान्य एसिड अटैक से भी अधिक भयावह होती है और इसके आरोपियों को किसी भी प्रकार की रियायत का हक नहीं होना चाहिए। यह टिप्पणी उस पीआईएल की सुनवाई के दौरान आई, जिसे एसिड अटैक सर्वाइवर और ‘ब्रेव सोल्स फाउंडेशन’ की संस्थापक शाहीन मलिक ने दायर किया था।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमल्या बागची की पीठ ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में बीएनएस की धारा 109 (पहले आईपीसी की धारा 307 – हत्या का प्रयास) के तहत ही ट्रायल होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि जबरन एसिड पिलाने वाले आरोपी समाज के लिए गंभीर खतरा हैं और उन्हें खुला घूमने का कोई अधिकार नहीं है। अदालत ने ऐसे अपराधों को “सबसे घिनौना और अमानवीय” बताते हुए कहा कि इन मामलों में कानून को और सख्त बनाने की जरूरत है।
याचिका में मांग की गई थी कि जिन पीड़ितों को जबरन एसिड पिलाया जाता है, उन्हें भी विकलांगता कानून (RPwD Act) में विशेष रूप से ‘एसिड अटैक पीड़ित’ की श्रेणी में शामिल किया जाए, क्योंकि उनके नुकसान और शारीरिक प्रभाव अधिक गंभीर होते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया कि कानून में आवश्यक संशोधनों पर विचार किया जा सकता है और अगली सुनवाई में केंद्र सरकार से विस्तृत जवाब मांगा जाएगा।

