Jharkhand Election :24 साल पहले बिहार से अलग होकर झारखंड ने एक नए राज्य के रूप में अपनी पहचान बनाई थी, लेकिन आज भी झारखंड का चुनावी परिदृश्य बिहार की राजनीतिक विरासत से प्रभावित दिखाई देता है। इस बार का झारखंड विधानसभा चुनाव भी इससे अलग नहीं है। बिहार की तमाम प्रमुख पार्टियाँ, जैसे राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) [एलजेपी (आर)], और जनता दल (यूनाइटेड) [जेडीयू], झारखंड में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए सक्रिय हैं। ये पार्टियाँ सीट साझा करने, जातिगत अपील, और भाषाई संबंधों के माध्यम से झारखंड को अपने लिए उपजाऊ भूमि मान रही हैं। इन पार्टियों की झारखंड में सफलता अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों के लिए भी उनका मनोबल बढ़ाएगी।
हालांकि, बिहार की इन पार्टियों की झारखंड में सक्रियता से झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) चिंतित है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भोजपुरी जैसी भाषाओं को बिहार से उधार ली गई भाषा कहकर इसे झारखंड की मूल भाषा मानने से इनकार किया। लेकिन 2011 की जनगणना से पता चलता है कि झारखंड के सीमावर्ती जिलों में भोजपुरी, मगही, और अंगिका व्यापक रूप से बोली जाती हैं। पलामू, गढ़वा, चतरा, साहेबगंज, देवघर, गिरिडीह, और दुमका जैसे क्षेत्रों में इन भाषाओं का असर बिहार आधारित पार्टियों को स्थानीय लोगों से जोड़ने में मदद करता है।
जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, बिहार के 14% से अधिक अंतरराज्यीय प्रवासी झारखंड में बस गए हैं, जिससे झारखंड का सामाजिक ताना-बाना काफी प्रभावित हुआ है। दोनों राज्यों में समान जातीय संरचना देखने को मिलती है, जहां अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की आबादी 50% से अधिक है। यह संरचना आरजेडी और जेडीयू जैसी जाति-आधारित पार्टियों के लिए झारखंड के उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्रों में स्वाभाविक समर्थन क्षेत्र तैयार करती है।
सीटों के बंटवारे के संदर्भ में, एनडीए ने ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (एजेएसयू) के साथ जेडीयू और एलजेपी (आरवी) को सीटें आवंटित की हैं। वहीं, इंडिया गठबंधन में आरजेडी की सीटों की मांग ने जेएमएम के साथ तनाव को जन्म दिया, लेकिन अंततः आरजेडी को सीटें दी गईं। इसके अलावा, पप्पू यादव और जीतन राम मांझी जैसी बिहार की राजनीतिक हस्तियों की झारखंड चुनाव में सक्रिय भागीदारी भी देखने को मिल रही है।
महत्वपूर्ण सीटें और पार्टियों की चुनौती:
इस चुनाव में आरजेडी छह सीटों, जेडीयू दो सीटों, और चिराग पासवान की एलजेपी (आरवी) एक सीट पर किस्मत आजमा रही है। यह इन दलों के लिए लिटमस टेस्ट होगा कि उनका जनाधार बिहार से बाहर, झारखंड जैसे पड़ोसी राज्य में भी प्रभावशाली है। भाषाई, सांस्कृतिक, और क्षेत्रीय समानता के बावजूद झारखंड में इन पार्टियों का प्रदर्शन 23 नवंबर को मतगणना के बाद स्पष्ट हो जाएगा।

