बिहार में जमीन सर्वे का मुद्दा विधानसभा चुनाव से पहले डबल इंजन सरकार के लिए चुनौती बन गया है। सरकार इस योजना को लेकर लगातार नई समय-सीमाएं तय कर रही है। हाल ही में, जमीन सर्वे की अवधि को एक बार फिर बढ़ा दिया गया है। बिहार के राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने इसके लिए नया लक्ष्य निर्धारित किया है।
चुनावी माहौल में बढ़ती मुश्किलें
विधानसभा चुनाव से पहले जमीन सर्वे का ऐलान कर सरकार खुद कठिन स्थिति में फंस गई है। सर्वे को लेकर जनता में बढ़ती नाराजगी के कारण सरकार लगातार बैकफुट पर है। डबल इंजन सरकार चुनाव के दौरान किसी तरह का जोखिम उठाने के मूड में नहीं है, इसलिए सर्वे की समय सीमा बार-बार बढ़ाई जा रही है।
विभाग की उपलब्धियां और चुनौतियां
राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार ने हाल ही में विभाग की उपलब्धियों की जानकारी देते हुए कहा कि 1400 राजस्व पदाधिकारियों में से 458 पर कार्रवाई की गई है। जांच के लिए ऑनलाइन व्यवस्था की गई है, और शिकायतों के निपटारे के लिए मुख्यालय में चार अधिकारियों की टीम तैनात है।उन्होंने बताया कि लैंड सर्वे के लिए किसी को कार्यालय आने की आवश्यकता नहीं है। लोग अपनी शिकायतें और दस्तावेज ऑनलाइन जमा कर सकते हैं। जमीन मालिकों के पास जरूरी कागजात न होने पर भी उनकी जमीन सरकार की नहीं मानी जाएगी। इसके लिए कई प्रावधान किए गए हैं।
सर्वे का विस्तार और नए लक्ष्य
बिहार में 45,000 गांवों में सर्वे का काम एक से दो साल में पूरा करने का लक्ष्य है। इसके लिए 80,035 अमीन नियुक्त किए गए हैं। जमीन सर्वे के पहले चरण में 20 जिलों में काम अंतिम चरण में है, जबकि दूसरे चरण में बाकी 18 जिलों में सर्वे शुरू हो चुका है।अपर मुख्य सचिव ने बताया कि सर्वे की समय सीमा को बढ़ाकर जुलाई 2026 तक कर दिया गया है। विवादों और कठिनाइयों को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है। सरकार ने केंद्र को प्रस्ताव भेजा है कि सोनपुर, बक्सर, राजगीर, तारापुर, बांका और डेहरी जैसे शहरी इलाकों में भी सर्वे कराया जाए।
नई योजनाएं
जमीन मालिकों को अपील का एक और मौका देने के लिए कानून तैयार किया जा रहा है। जनवरी 2024 से जमाबंदी को आधार से जोड़ने की योजना है, जिससे प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाया जा सके।

