सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि सीबीआई (CBI) जांच को हर मामले में सामान्य प्रक्रिया नहीं माना जा सकता, यह सिर्फ ‘अंतिम उपाय’ के तौर पर अपनाई जानी चाहिए। अदालत ने कहा कि राज्य सरकारों और उच्च न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जांच एजेंसी को तभी मामला सौंपा जाए, जब स्थानीय पुलिस या राज्य की जांच एजेंसी पूरी तरह विफल साबित हो। शीर्ष अदालत ने यह भी जोड़ा कि सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसियों की भूमिका विशेष परिस्थितियों में ही होनी चाहिए, ताकि उनकी विश्वसनीयता और निष्पक्षता पर सवाल न उठें।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति एस.वी. भट की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि सीबीआई को हर छोटे-बड़े मामले में शामिल करना न्यायिक प्रक्रिया की आत्मा के खिलाफ है। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि किसी भी जांच को केंद्रीय एजेंसी को सौंपने से पहले ठोस कारण और पर्याप्त सबूत होने चाहिए कि राज्य पुलिस स्वतंत्र या निष्पक्ष जांच करने में असफल रही है। पीठ ने कहा, “सीबीआई एक विशेष एजेंसी है, जिसे असाधारण परिस्थितियों के लिए बनाया गया है। इसका प्रयोग विवेकपूर्ण तरीके से होना चाहिए, न कि सामान्य जांच प्रक्रिया के स्थान पर।”
कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी राजनीतिक तौर पर भी अहम संदेश देती है, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में कई मामलों में सीबीआई जांच को लेकर विवाद खड़े हुए हैं—चाहे वह विपक्ष के नेताओं के खिलाफ कार्रवाई का मुद्दा हो या राज्यों और केंद्र के बीच टकराव का। अदालत की यह टिप्पणी स्पष्ट करती है कि जांच एजेंसियों का इस्तेमाल न्याय की भावना के तहत होना चाहिए, न कि राजनीतिक उद्देश्य से। सुप्रीम कोर्ट का यह रुख न केवल संघीय ढांचे की मर्यादा को मजबूत करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता और जनता का भरोसा बरकरार रहे।

