प्रसिद्ध लोक गायिका और सुपौल की बेटी शारदा सिन्हा के निधन की खबर से उनके पैतृक गांव हुलास में शोक का माहौल है। शारदा सिन्हा के छोटे भाई, डॉ. पद्मनाभ शर्मा, ने बताया कि बीती रात करीब 10 बजे उन्हें बहन के देहांत की सूचना मिली। रात अधिक होने के कारण वे रात में नहीं जा सके और बुधवार सुबह पटना के लिए रवाना हुए। गांव में गहरा शोक व्याप्त है, और अब मायके में इस साल छठ महापर्व नहीं मनाया जाएगा। मायके वालों ने भावुक होकर कहा कि “छठ मैय्या ने अपनी बेटी को अपने पास बुला लिया।”
पटना में अंतिम संस्कार की इच्छा थी
पटना की ओर जाते समय, शारदा सिन्हा के छोटे भाई और उनकी पत्नी सुमन शर्मा ने बताया कि उनकी दीदी की इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार उसी स्थान पर हो, जहां उनके पति का किया गया था। बता दें, शारदा सिन्हा के पति का अंतिम संस्कार पटना में हुआ था। उनका पार्थिव शरीर आज दिल्ली से पटना लाया गया है, और कल अंतिम संस्कार होगा।

भाई को राखी बांधने की परंपरा
डॉ. पद्मनाभ शर्मा ने बताया कि शारदा सिन्हा आखिरी बार 31 मार्च को अपने भतीजे की शादी में हुलास आई थीं, जहां से वह अगले दिन पटना चली गईं। उन्होंने वादा किया था कि जल्दी ही फिर लौटेंगी और कुछ दिन ठहरेंगी, लेकिन यह किसे पता था कि वही उनकी आखिरी यात्रा होगी। भाई ने बताया कि शारदा सिन्हा की प्रारंभिक पढ़ाई हुलास में ही हुई थी। प्रसिद्धि पाने के बाद भी वे हर रक्षाबंधन पर भाई को राखी बांधना नहीं भूलती थीं। यदि खुद नहीं आ पातीं तो डाक से राखी भेज देती थीं। उनके निधन से पूरा परिवार और गांव सदमे में है। जिस शारदा सिन्हा की आवाज से छठ घाट गूंजते थे, उनकी अनुपस्थिति से आज गांव गमगीन है।
ससुराल में भी शोक का माहौल
बेगूसराय जिले के सीहमा गांव, जो शारदा सिन्हा का ससुराल है, में भी शोक की लहर है। उनके ससुराल वालों ने कहा कि उनकी बहू बिहार की बेटी थीं और अपने गीतों से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोगों के दिलों में बस गईं। लोगों ने उन्हें छठी मैया की बेटी के रूप में याद किया। उनका ससुराल से गहरा लगाव था, और वे हर साल अपने ससुराल आती थीं, लोगों की सहायता करती थीं। उनका अभाव आज सभी महसूस कर रहे हैं, जो कभी पूरा नहीं हो सकेगा। हालांकि, उनकी आवाज के माध्यम से वे हमेशा लोगों के बीच जीवित रहेंगी।

