बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए सियासी सरगर्मी तेज़ हो चुकी है। एनडीए (NDA) और इंडिया गठबंधन (INDIA Alliance) दोनों ही चुनावी मैदान में पूरी ताकत झोंक रहे हैं। भाजपा, जदयू और एलजेपी (रामविलास) के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर जहां रणनीतिक बैठकें जारी हैं, वहीं विपक्षी खेमे में आरजेडी, कांग्रेस और वामदलों के बीच तालमेल को लेकर तनाव बढ़ गया है। एनडीए नेताओं का दावा है कि इस बार भी बिहार में उनकी सरकार भारी बहुमत से लौटेगी, जबकि विपक्ष जनता से ‘परिवर्तन’ के नाम पर वोट मांग रहा है। राजनीतिक गलियारों में यह चुनाव नीतीश कुमार की साख और तेजस्वी यादव की सियासी परिपक्वता की सीधी परीक्षा माना जा रहा है।
राज्य के अलग-अलग जिलों में प्रचार अभियान जोर पकड़ने लगा है। गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल के दिनों में कई संयुक्त रैलियां की हैं, जिनमें विकास और स्थिरता को चुनावी मुद्दा बनाया जा रहा है। शाह ने कहा कि “बिहार में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में दोबारा स्थिर और मजबूत सरकार बनेगी।” दूसरी ओर, इंडिया गठबंधन की ओर से आरजेडी नेता तेजस्वी यादव लगातार बेरोजगारी, शिक्षा और महंगाई को मुद्दा बनाकर जनता से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस ने भी अपने पुराने वोटबैंक को पुनर्जीवित करने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। वहीं, सीपीआई और सीपीएम जैसे वामदल भी कुछ सीटों पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए प्रयासरत हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार का चुनाव जातीय समीकरणों से अधिक विकास और स्थानीय नेतृत्व पर केंद्रित रहेगा। एनडीए जहां केंद्र सरकार की योजनाओं और “डबल इंजन सरकार” की उपलब्धियों को गिनाने में जुटा है, वहीं इंडिया गठबंधन सरकार की विफलताओं को मुद्दा बनाकर जनता का रुख बदलने की कोशिश कर रहा है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर दोनों पक्षों की डिजिटल जंग भी चरम पर है, जहां आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला लगातार जारी है। चुनाव आयोग जल्द ही आधिकारिक तारीखों का ऐलान करने वाला है, जिसके बाद प्रचार अभियान और तेज हो जाएगा। कुल मिलाकर, बिहार की सियासत एक बार फिर दिलचस्प मोड़ पर है, जहां सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने के लिए हर दल अपनी आख़िरी चाल चलने को तैयार दिख रहा है।