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पादना अब FART कहलाता है लेकिन क्या उसकी…

‘पादना’ गैरकानूनी नहीं है। यही नहीं, इसे लिखना भी सामाजिक तौर पर अभद्रता नहीं है।इसके स्थान पर ‘फार्ट करना’ लिखने से पादना से जुड़ी झेंप, परिहास अथवा दुर्गन्ध की अनुभूति चली नहीं जाती। पादना पर अंग्रेजी पोतने से अगर उसमें से ख़ुशबू आने लगे तब तो फ्रैंच में पेट् कहिए माहौल में और तरावट आएगी क्योंकि फ्रैंच इत्र तो दुनिया में मशहूर हैं।

 

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पादने की क्रिया का कोई विकल्प नहीं उसी तरह ‘पादना’ शब्द का भी पर्याय क्यों तलाशें? हिन्दी पर लज्जा आती है? फार्ट कहने से क्या आशय पियानो वादन हो जाता है!शौच, टट्टी की जगह ‘पॉटी’ कहने से क्या पदार्थ का गुणधर्म बदल जाता है !Fart और पाद दोनों का मूल एक है। वैदिक क्रिया ‘पर्द’ है और इंडो यूरोपीय मूल ‘perd’ है। फ्रैंच का pet यानी पेट् इसी पर्द से आ रहा है जिससे fart भी बना। वैदिक पर्द से पद्द और फिर हिन्दी का पाद रूप बना। पादू, पद्दू, पदक्कड़ ऐसे लोगों को कहते हैं जो बार बार हवा निकालते हैं। इन्हें वातरोग हो सकता है। पादने की इच्छा को पदास कहते हैं। लगातार पादने वाले के लिए पदौड़ा शब्द सबसे लोकप्रिय है।

 

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दुनिया के हर क्षेत्र में लोग आगे आने की ख़्वाहिश रखते हैं। अनेक लोग तमाम तरह के ख़िताब जीतना चाहते हैं। मगर पदौड़ा शायद ही कोई कहलाना चाहता हो ! पर्दन् से पादना बना। perd से Fart. ये गदहपचीसी है कि Fart कबूल है और पाद नहीं। fart कहने से क्या बदबू, झेंप या झिझक चली जाती है? “बाथरूम जाना है” या “बाथरूम आ रही है” तक तो ठीक है किन्तु “जोर से” आने पर पतलून या बिस्तर में ‘बाथरूम’ हो जाने जैसे चमत्कार को देख कर अलादीन का जिन्न भी घबरा जाए। ऐसे में बेचारी भाषा भी ठिठक कर रह जाती होगी। अब टॉयलेट या वाशरूम कहने का भी चलन है। बात आसान लगती है तो अपना लेनी चाहिए। मगर पादने के लिए तो कोई वाशरूम नहीं जाता। वह तो जब होनी है, हो जाती है।सार्वजनिक स्थान पर अपनी जगह किसी अन्य का नाम ले देना आसान है। मगर ध्यान रखें अगर आप स्वयं बेशर्मों की तरह मूली खाएँ और फिर पादने पर जब विवश हो जाएं तो इशारा किसी और की ओर करें तो इससे ज़्यादा दुष्टतापूर्ण कृत्य कोई नहीं। बात भला कैसे छुपेगी?पादना बहुत ज़रूरी और लाभदायक क्रिया है। मैं जैविक और भाषिक दोनों स्तरों पर इसका खुला प्रयोग करने के पक्ष में हूँ।देश के युवाओं की आड़ में अपनी गदहपच्चीसी दिखा रहे हिंग्लिश समर्थकों को अपनी भाषा पर इतनी ही शर्म आ रही है तो याद रखें भाषा को माँ का दर्जा दिया गया है।

 

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बात बात में गालियाँ बकते लोगों को किन्हीं शब्दों के मामले में शरमाते देखना ठीक वैसा ही है जैसे कोई सफाईकर्मी खुद को ग्राम पंचायत अधिकारी बता कर पढ़ी-लिखी दुल्हन ब्याह लाए। बाद में उसकी तरक्की से जल-भुन कर गदहपचीसी करने लगे। और ‘पाद’ से इतना ही परहेज़ है तो भला ‘सम्पादक’ का क्या अर्थ बताते होंगे ?

 

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बचपन से आपको सिखा दिया गया है कि पाद बुरा है तो आपने मान लिया कि बुरा होता है ! और ऐसा पीढ़ी दर पीढ़ी हुआ है ! (इसलिए आज तक किसी महापुरुष की जीवनी में उनके किए तमाम गैरज़रूरी कामों के ज़िक्र के बावजूद उनके पादने का ज़िक्र नहीं मिलता) इसलिए आपने मान लिया है कि पादना बुरा है ! लेकिन सच इससे बिलकुल उलट है ! पादना अच्छी सेहत की निशानी है ! ये बताता है कि आप पर्याप्त मात्रा में फाइबर खा रहे हैं और आपके शरीर में पाचक बैक्टीरिया की अच्छी संख्या मौजूद है |

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