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राजनीति

सचिन पायलट को अशोक गहलोत वाली कूटनीति सीखने की आवश्यकता

सचिन पायलट मीडिया के डार्लिंग है, युवाओं के अजीज है। अच्छा बोलते है, हमेशा विपक्षियों के सॉफ्ट कॉर्नर पर रहते है। जनता उनके भीतर कांग्रेस का भविष्य देखती है, उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए था। लेकिन जब अशोक गहलोत जैसे खांटी नेता पहले से मौजूद है, तो आप निसंदेह किसी और को उनके आगे खड़ा नहीं कर सकते।
आज अशोक गहलोत ने इसे अक्षरशः साबित किया है। आज राज्यसभा चुनाव के दौरान खुद पोलिंग एजेंट बने थे। संख्या के हिसाब से कांग्रेस की दो सीटें फिक्स थी। तीसरी सीट के लिए कांग्रेस के प्रमोद तिवारी और भाजपा समर्थित ज़ी न्यूज़ वाले सुभाष चन्द्र के बीच मुक़ाबला था। जीतने के लिए 41 वोटों की जरूरत थी, कांग्रेस के पास महज 29 वोट थे। भजापा के पास कुल 33 सदस्य थे। निर्दलीय विधायकों की संख्या 13 थी।
चुनाव परिणाम आने के बाद प्रमोद तिवारी तीन अतिरिक्त वोटों के साथ विजई घोषित हुए। भाजपा के दो विधायकों ने कांग्रेस के पक्ष में क्रॉस वोटिंग कर दिया। सुभाष चन्द्र चुनाव हार गए। सचिन को यही कूटनीति सीखने की आवश्यकता है, आने वाले अगले 25 साल उनसे कोई नहीं छीन सकता।

सुभाष चंद्रा मतगणना से पहले ही दिल्ली लौट गए

राजस्थान के राज्यसभा चुनावों में भाजपा समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी सुभाष चंद्रा मतगणना से पहले ही दिल्ली लौट गए हैं । एस्सेल ग्रुप के मालिक और हरियाणा से राज्यसभा सदस्य सुभाष चंद्रा ने इस बार राजस्थान से राज्यसभा चुनाव लड़ा है। उन्हें उम्मीद थी कि भाजपा, निर्दलीय और अन्य दलों के विधायकों के दम पर वे चुनाव जीत लेंगे। मतदान के बाद से जिस तरह के रुझान सामने आए और भारतीय जनता पार्टी में ही क्रॉस वोटिंग हो गई। इसके बाद उनकी जीतने की संभावनाएं लगभग खत्म हो गई थी। ऐसे में वे शाम 4 बजे से पहले ही दिल्ली लौट गए, जबकि मतगणना 5 बजे शुरू होनी प्रस्तावित थी।

राजस्थान के लिए काम करता रहूंगा

दिल्ली लौटने से पहले सुभाष चंद्रा राजस्थान विधानसभा में मीडिया से रूबरू हुए। इस दौरान सुभाष चंद्रा ने कहा कि उनका राजस्थान से रिश्ता बना रहेगा। वे यहां आते जाते रहेंगे। उन्होंने कहा कि मैं जीतू या हारू, यहां के लोगों से मेरे रिश्ते बने रहेंगे। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों ने मुझे आज फोन कर माफी मांगी और कहा कि इस बार वे उनका साथ नहीं दे सकेंगे।

फेंका था आरक्षण का दांव

मतदान से पहले गुरुवार देर रात भाजपा समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी सुभाष चंद्रा के ट्वीट से सियासत गर्मा गई थी। सुभाष चंद्रा ने निर्दलीय विधायक बलजीत यादव को को टैग करते हुए 1 ट्वीट पोस्ट किया था जिसमें लिखा था कि “राजस्थान की जनता और विधायकों को भरोसा दिलाता हूं, प्रदेश की सरकारी भर्तियों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता व आरक्षण देने के प्रावधान के लिए राज्यसभा में उचित प्रयास करूंगा,राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने व संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करवाने की कोशिश करूंगा।

चौथी सीट पर था कड़ा मुकाबला

राजस्थान में राज्यसभा की 4 सीटों पर हो रहे चुनाव में चौथे उम्मीदवार की एंट्री ने मुकाबले को रोचक बना दिया था। चौथी सीट पर मुकाबला कड़ा था। यही एक ऐसी सीट थी जिस पर अपने प्रत्याशी को जिताने में निर्दलीय और छोटे दलों के विधायकों की भूमिका अहम थी। यही कारण है कि हरेक विधायक को अपने पाले में डालने की पुरजोर कोशिश की जा रही थी। बलजीत यादव का नाम इसमें ही शुमार था।

2016 में हरियाणा से बने थे राज्सभा मेम्बर

2016 में, चंद्रा ने हरियाणा से अपनी राज्यसभा की सीट, कांग्रेस का समर्थन पाए निर्दलीय उम्मीदवार आरके आनंद को हराकर जीती थी. उनकी विजय को लेकर एक विवाद भी खड़ा हुआ था क्योंकि कांग्रेस के 14 विधायकों के वोट गलत पेन इस्तेमाल करने के कारण रद्द हो गए थे. तब से अपने कार्यकाल के पांच वर्षों में, सदन में चंद्रा की उपस्थिति 55 प्रतिशत रही है जो कि राष्ट्रीय औसत 78 प्रतिशत और राज्य के औसत 86 प्रतिशत से काफी कम है।

पायलट गुट को अशोक गहलोत ने दिया बड़ा संदेश

कहा जा रहा है कि राज्यसभा चुनाव में इस बैटिंग के जरिए अशोक गहलोत ने अपनी सरकार के समीकरणों को भी साध लिया है। चिंतन शिविर के बाद से ही लगातार यह कयास लगाए जा रहे थे कि राज्य में बड़े बदलाव कांग्रेस कर सकती है। गहलोत के प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलट को सीएम से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक की जिम्मेदारी दिए जाने के कयास लग रहे थे। हालांकि अशोक गहलोत ने जिस तरह से राज्यसभा चुनाव से मोर्चा संभाला है, उससे यह संदेश देने में सफल हो गए हैं कि ज्यादातर विधायक आज भी उनके साथ हैं और सचिन पायलट का कद अभी उनके बराबर का नहीं हुआ है। यही वजह है कि अशोक गहलोत खासे सक्रिय रहे और लगातार यह संदेश दे रहे हैं कि अभी उनका विकल्प पार्टी के पास नहीं है।

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