पटना: बिहार की दूसरी राजभाषा उर्दू के साथ कथित भेदभाव का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। सोशल मीडिया और विभिन्न मंचों पर उठ रहे सवालों के बीच, यह आरोप लगाया जा रहा है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार के तहत उर्दू भाषा को सरकारी संरचनाओं, जैसे सड़कों, मेट्रो, और ओवरब्रिजों के साइनबोर्ड से व्यवस्थित रूप से हटाया जा रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और सड़क निर्माण मंत्री नितिन नवीन पर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर उर्दू, जो बिहार की दूसरी राजकीय भाषा है, क्यों हर जगह से गायब हो रही है?
इस सिलसिले में आल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुसलमीन के बिहार प्रदेश यूथ अध्यक्ष आदिल हसन ने लिखा की बिहार में एनडीए की सरकार है। उर्दू भाषा से इतना भेदभाव क्यों कर रही है? जबकी बिहार की दूसरी भाषा उर्दू है मुख्यमंत्री नितीश कुमार जी और मंत्री नितिन नबीन जी उर्दू हर जगह से गायब क्यों हो रहा है?रोड,मेट्रो और ओवरब्रिज सरकारी हर जगह से गायब हो रहा है।
बताते चलें की बिहार में उर्दू को 1989 में दूसरी राजभाषा का दर्जा दिया गया था, और इसे शिक्षा, प्रशासन, और सार्वजनिक स्थानों पर बढ़ावा देने की बात कही गई थी। अनुमान के अनुसार, राज्य की लगभग 2 करोड़ आबादी उर्दू से जुड़ी हुई है। इसके बावजूद, हाल के वर्षों में उर्दू के उपयोग में कमी देखी गई है। सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने दावा किया है कि पटना के नए डबल-डेकर फ्लाईओवर, जेपी गंगा पथ, और कच्छी दरगाह-बिदुपुर पुल जैसे बड़े बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के साइनबोर्ड पर उर्दू का उपयोग न के बराबर है।