पटना। कॉफ्फेड के प्रबंध निदेशक ऋषिकेश कश्यप ने बताया कि बिहार राज्य के लाखों मछुआरों को सामाजिक-आर्थिक असुरक्षा, सरकारी योजनाओं से वंचित किए जाने और सहकारी संस्थाओं की उपेक्षा जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। मछुआरा समाज की यह पीड़ा अब असहनीय हो चुकी है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि राज्य एवं प्रमंडल स्तर पर पहले से कार्यरत मछुआ संघों की उपेक्षा करते हुए नए संघों का गठन किया जा रहा है, जिनका उद्देश्य पारंपरिक मछुआ सहकारी समितियों को निष्क्रिय बनाना एवं उनके लोकतांत्रिक स्वरूप को नष्ट करना प्रतीत होता है। चिंता की बात यह है कि इन नवगठित संघों में अध्यक्ष के रूप में प्रशासनिक अधिकारियों, विशेषकर आईएएस अधिकारियों को नियुक्त करने की तैयारी है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि मछुआ समाज को नेतृत्व से वंचित किया जा रहा है।
कॉफ्फेड के अध्यक्ष प्रयाग सहनी ने बताया कि, सरकारी तालाबों में पम्पिंग सेट, बीज, चारा एवं नाव इत्यादि हेतु पहले जो इनपुट योजनाएं उपलब्ध थीं, उन्हें बिना वैकल्पिक व्यवस्था के अचानक बंद कर दिया गया, जिससे मछुआरों की उत्पादन क्षमता एवं जीविका दोनों प्रभावित हुई है। जलाशय मात्स्यिकी नीति 2022 में अनेक प्रावधान ऐसे हैं, जो मछुआ सहकारियों के परंपरागत अधिकारों एवं प्राथमिकता को नजरअंदाज करते हैं। इसी प्रकार, जलाशयों की बंदोबस्ती प्रक्रिया को पारदर्शिता के नाम पर “खुली नीलामी” के अधीन कर दिया गया है, जिससे सहकारी समितियों को दरकिनार कर दिया जाता है और मछुआरों की हिस्सेदारी समाप्त हो रही है।
अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना का लाभ जमीनी स्तर पर कार्यरत सहकारी समितियों एवं वास्तविक मछुआ परिवारों तक नहीं पहुँच रहा है। इसके अलावा, आज भी हजारों मछुआरों को पहचान पत्र और बीमा योजना जैसी मौलिक सुरक्षा सुविधाओं से वंचित रखा गया है। इसके चलते न तो वे किसी योजना का लाभ ले पाते हैं और न ही दुर्घटना या आपदा की स्थिति में उन्हें कोई राहत मिलती है।

