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किताबों को अपना दोस्त बनाएं, समय कीमती है, इसे बर्बाद न करें: डॉ. सोबिया फातिमा

  • असाधारण मेहनत और दृढ़ता के साथ एम्स पटना तक का सफर करने वाली सोबिया फातिमा की कहानी शुरुआत को अंजाम तक पहुंचाने की शानदार मिसाल
  • सोशल मीडिया की चकाचौंध से दूर रहने की वकालत

 

मेराज नूरी

मैं डॉक्टर बनूंगी! यह संकल्प कोई साधारण नहीं था, बल्कि एक ऐसी लगन थी जो बचपन के क्लासरूम से शुरू होकर आज देश के प्रतिष्ठित अस्पताल अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की चमकती गलियारों तक पहुंची है। अपनी अथक मेहनत, माता-पिता के प्रोत्साहन और असीम जुनून के साथ पटना के ही एनएमसीएच से पिछले साल एमबीबीएस पूरा करने वाली डॉ. सोबिया फातिमा ने इस साल एम्स पटना में नौकरी हासिल कर न केवल अपने माता-पिता, परिवार और गांव-कस्बे का नाम रोशन किया, बल्कि अपना भविष्य भी सुरक्षित कर लिया है। डॉ. सोबिया फातिमा ने इस बार नीट पीजी परीक्षा में भी ऑल इंडिया रैंक 5000 हासिल की है, जो उनकी असाधारण मेहनत और निरंतरता का प्रमाण है। राजधानी पटना के फुलवारी शरीफ के निवासी और एसटीएफ के डीएसपी शेख साबिर तथा प्रसिद्ध शायरा जैनत शेख के घर 30 दिसंबर 1999 को जन्मी उनकी लाडली सोबिया फातिमा की कहानी शुरुआत को अंजाम तक पहुंचाने की एक बेहतरीन मिसाल है।

डॉ. सोबिया फातिमा ने एक विशेष बातचीत में अपने शैक्षिक सफर की संक्षिप्त कहानी सुनाई, जो बड़े सपने देखने और उन्हें हकीकत में बदलने वाले हर छात्र के लिए मशाल की तरह है। प्रशासनिक सेवा में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने वाले पिता और शायरी करने वाली मां की देखरेख में पली-बढ़ी सोबिया ने मेडिकल क्षेत्र चुनने के सवाल पर बताया कि एक तो बचपन से विज्ञान, खासकर जीवविज्ञान, मेरा पसंदीदा विषय था। दूसरा, मेरे नाना-नानी की दिली ख्वाहिश थी कि मैं डॉक्टर बनूं। इसलिए पहली-दूसरी कक्षा से ही मैंने ठान लिया था कि बस, यही करना है। और माशाअल्लाह, बड़ों की दुआएं, माता-पिता की मेहनत और शिक्षकों के मार्गदर्शन का असर हुआ कि अल्लाह ने मेरा सपना पूरा कर दिया। आज मैं एक डॉक्टर हूं और देश के प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, पटना एम्स में जूनियर रेजिडेंट के रूप में सेवाएं दे रही हूं।

 

डॉ. सोबिया फातिमा का शैक्षिक सफर डीएवी से शुरू हुआ, जहां उन्होंने पांचवीं तक पढ़ाई की। फिर राजधानी के ही ईशान इंटरनेशनल स्कूल में छठी से आठवीं तक पढ़ाई की और नौवीं से बारहवीं तक की शिक्षा रेडियंट इंटरनेशनल स्कूल से प्राप्त की। बचपन से सफलता की इस मंजिल तक ये तीन संस्थान रहे, जहां की वादियों में सोबिया ने अपना सपना देखा और उसे अंजाम तक पहुंचाया। 2017 में 12वीं की परीक्षा पास करने के बाद एक साल ड्रॉप लिया। पटना के एक कोचिंग सेंटर के हॉस्टल में रहकर नीट की तैयारी की। 2018 में नीट की प्रवेश परीक्षा दी, जिसमें शानदार रैंक हासिल करने के बाद पटना के ही नालंदा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (एनएमसीएच) में दाखिला मिल गया। यह सोबिया का पहला बड़ा पड़ाव था, जिसे अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने पार किया।डॉ. सोबिया फातिमा ने बताया कि यह मेरे लिए सौभाग्य की बात थी कि जिस शहर में मैं रहती थी, उसी शहर में मुझे अपने सपने को साकार करने का मौका मिला और यह अल्लाह की खास नेमत भी है कि आज उसी शहर में मेरा भविष्य भी सुरक्षित हो गया है। बिहार की धरती पर जन्मी, पली-बढ़ी, पढ़ाई की और नौकरी भी यहीं मिली।

 

मेडिकल क्षेत्र में प्रवेश की तैयारी और चुनौतियों के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में डॉ. सोबिया फातिमा ने बताया कि मेडिकल की तैयारी कोई आसान काम नहीं है। आपकी बुद्धिमत्ता, आपकी क्षमता और पढ़ाई के साथ-साथ एक चुनौती आर्थिक भी होती है। पहले भी ऑफलाइन कोचिंग की फीस बहुत ज्यादा होती थी, आज भी है। हालांकि अब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जैसे फिजिक्सवाला और खान सर ने इसे कुछ हद तक आसान कर दिया है। फिर भी, प्रवेश परीक्षाओं की तैयारियां बहुत महंगी हैं। यही हाल मेडिकल कॉलेजों का भी है। निजी मेडिकल कॉलेजों की फीस आम लोगों के बस की बात नहीं है। आर्थिक रूप से मजबूत वर्ग के छात्र ही इसे वहन कर सकते हैं। इसके विपरीत, सरकारी मेडिकल कॉलेजों में यह समस्या नहीं होती। वहां मामूली फीस पर एमबीबीएस सहित मेडिकल के अन्य कोर्स पूरे हो जाते हैं। उदाहरण के लिए मैं हूं। मैंने सालाना 13 हजार की फीस देकर एनएमसीएच से अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि आप मेहनत और लगन के साथ नीट की परीक्षा में बेहतर रैंक हासिल करें, ताकि आपका दाखिला किसी सरकारी मेडिकल कॉलेज में हो सके।

अपने परिवार के साथ डॉक्टर सोबिया फातमा

जाहिर है, सरकारी मेडिकल कॉलेज तभी मिलेंगे, जब आप बेहतर परिणाम लाएंगे और इसके लिए जरूरी है कि तैयारी बेहतर हो। भौतिकी, रसायन विज्ञान और जीवविज्ञान वे विषय हैं, जिनमें महारत ही मेडिकल में प्रवेश की गारंटी है। इसलिए जरूरी है कि पूरी तन्मयता के साथ पढ़ाई की जाए, शिक्षकों द्वारा पढ़ाए गए पाठ को रोजाना रिवीजन के जरिए दिमाग में बिठाया जाए। शिक्षकों के मार्गदर्शन को अनमोल मानें और उसका ईमानदारी से पालन करते हुए पढ़ाई करें। इंशाअल्लाह, आपकी मेहनत बेकार नहीं जाएगी। सफलता यकीनन मिलेगी। डॉ. सोबिया फातिमा ने मोबाइल के बेजा इस्तेमाल को हानिकारक बताते हुए कहा कि इसका उपयोग सीमित दायरे में करना ही बेहतर है, वरना आपका फोकस पढ़ाई से हटकर दूसरी ओर चला जाता है, जिसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। यह समय का भी नुकसान है और अपनी क्षमता के बर्बाद होने का भी खतरा है।

 

संक्षेप में, सोबिया फातिमा से डॉ. सोबिया फातिमा तक का सफर आज के छात्रों के लिए एक बड़ा संदेश है कि मेहनत और ईमानदार कोशिशें आपको सफलता की मंजिल तक ले जाती हैं। डॉ. सोबिया फातिमा का संदेश आज के युवाओं के लिए एक तोहफा है। व्हाट्सएप और सोशल मीडिया की चकाचौंध में खोने से बेहतर है कि किताबों को अपना दोस्त बनाएं, शिक्षकों का मार्गदर्शन लें और पढ़ाई को दिमाग में बिठाएं। अपने लिए पढ़ें। समय कीमती है, इसे बर्बाद न करें।

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