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राजनीति

ममता बनर्जी महोदया का धर्म संकट

आर के जैन

लगता है कि मैडम ममता बनर्जी श्री यशवंत सिन्हा जी को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनवा कर दुविधा में पड़ गई है । श्री सिन्हा राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी बनने से पहले तृणमूल कांग्रेस के नेता थे और श्रीमती ममता बनर्जी महोदया ने ही उन्हें विपक्ष का साझा प्रत्याशी बनाने के लिए मुहिम चलाई थी । श्री सिन्हा के लंबे राजनीतिक अनुभव व उनकी योग्यता को देखते हुऐ लगभग सभी विपक्षी दलों ने उनके नाम पर सहमति दे चुके है ।

पश्चिम बंगाल में लगभग 7-8% आदिवासी जनजाति रहती हैं जिसने वर्ष 2021 के विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस का समर्थन किया था जबकि 2019 के लोकसभा चुनावों में बंगाल के आदिवासी समुदाय ने बीजेपी का समर्थन किया था । आदिवासीयो के समर्थन मिलने के कारण ही 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने आदिवासी बहुल लगभग सभी सीटें जीत ली थी और चूँकि विधानसभा चुनावों में आदिवासियों ने ममता बनर्जी महोदया का समर्थन किया था तो बीजेपी को भारी पराजय का सामना करना पड़ा और ममता बनर्जी उन सभी सीटों को जीतने में सफल हुई थी।

अभी 30 जून को आदिवासी समुदाय ने हर साल की तरह ‘ हूल दिवस ‘ मनाया था । यह दिवस उन आदिवासी वीरो की याद में मनाया जाता है जिन्होंने अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजाया था और शहीद हुऐ थे। बीजेपी के नेताओं ने इस अवसर पर श्रीमती द्रौपदी मुरमू जी जो आदिवासी समुदाय की है का ज़ोर शोर से उल्लेख किया और तृणमूल कांग्रेस को आदिवासी विरोधी करार देकर कटघरे में खड़ा कर दिया है ।

पत्रकारो के एक सवाल के जवाब में ममता बनर्जी ने जवाब दिया है कि यदि बीजेपी पहले से उनकी उम्मीदवारी की घोषणा करती तो वह उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करती और यह प्रयास भी करती कि वह राष्ट्रपति पद पर निर्विरोध निर्वाचित हो जाये । ममता बनर्जी ने यह भी कहा कि वह आदिवासी समुदाय की महिला प्रत्याशी का विरोध कैसे कर सकती थी ।

दरअसल ममता बनर्जी को अब लगने लगा है कि श्री यशवंत सिन्हा जी की जीत तो मुश्किल है ही साथ ही आदिवासी समुदाय भी उनसे अलग हो सकता है । वह अब केंद्र से भी ज़्यादा संबंध बिगड़ने नहीं देना चाहती और इस बहाने बीजेपी उनकी छवि आदिवासी विरोधी होने की ज़रूर बनायेगी जो 2024 के लोकसभा चुनावों में उन्हें भारी पड़ सकती हैं ।

वैसे ममता बनर्जी महोदया ने ही श्री यशवंत सिन्हा जी को राष्ट्रपति पद के लिए विपक्षी दलों का संयुक्त प्रत्याशी बनाने की मुहिम चलाई थी और जिसे सभी ने स्वीकार भी कर लिया है पर अब वह स्वयं पशोपेश में हैं । ममता बनर्जी महोदया के स्वभाव व उनकी पिछली बातों को देखते हुऐ यह पूरी संभावना बन रही है कि वह राष्ट्रपति महोदय के चुनाव से ऐन पहले अपना रूख बदल सकती हैं । वैसे भी ममता बनर्जी महोदया अपनी बातों से पलटने के लिए पहले से ही मशहूर हैं और यदि वह इस बार भी पलटतीं है तो वह कोई नई बात नहीं होगी ।

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