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मछली पालन के क्षेत्र में जिले के किसान आत्मनिर्भर बनने की राह पर

सीतामढ़ी : मछली पालन के क्षेत्र में जिले के किसान आत्मनिर्भर बनने की राह पर चल दिए है। इस व्यवसाय से जुड़े मत्स्यपालक अब दूसरे प्रदेश के बजाए कृषि विज्ञान केंद्र से बीज खरीद रहे हैं। नई तकनीक और उन्नत प्रजाति की मछलियों का बीज कम समय व लागत में मुनाफे वाला बिजनेस साबित हो रहा है। इससे पहले किसान पारंपरिक पद्धति से मछली पालन के व्यवसाय में जुड़े थे। उन्हें बंगाल व अन्य प्रदेश से बीज मंगवाना पड़ता था। इसके कारण उन्हें पर्याप्त आमदनी नहीं हो रही थी और उनकी आय व उपज उच्च कीमत वाली व्यवसायिक मछली की प्रजातियों की तुलना में बहुत कम थी। इसकी वजह जिले में नई प्रजाति की बीज उत्पादन की व्यवस्था नही थी, लेकिन जब से केंद्र में नई प्रजाति की मछली बीज उत्पादन शुरू हुआ है तब से अच्छी कमाई को देख नई प्रजाति की बीज की मांग भी बढऩे लगी है। केंद्र द्वारा बीज के साथ मत्स्यपालको को वैज्ञानिक तकनीकी और प्रबंधन की जानकारी भी मिल रही है।

यह तीन नई प्रजातियां बढ़ा रही आमदनी :  दरअसल नेशनल फिशरी डेवलपमेंट बोर्ड हैदराबाद द्वारा कृषि विज्ञान केंद्र के प्रक्षेत्र पर पिछले तीन साल तक उन्नत प्रभेद की जयंती रोहू, अमूर कार्प और उन्नत भाकुर मछली के उत्पादन के लिए शोध व प्रदर्शन का कार्य किया गया था। इसके सकारात्मक परिणाम मिलने पर केंद्र व किसानों के प्रक्षेत्र पर प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शन का निष्कर्ष उत्साहवर्धक पाया गया। इस प्रदर्शन से संबंधित प्रतिवेदन बोर्ड द्वारा राष्ट्रीय मत्स्यकी विकास बोर्ड को भेजा गया। प्रभावित होकर बोर्ड द्वारा केंद्र को इन तीन प्रजाति की बीज उत्पादन को हरी झंडी मिल गई। केंद्र इन प्रभेद के बीज उत्पादन, संचयन और विपणन जिला, राज्य ही नही अन्य दूसरे प्रदेश में कर रही है। अभी यूपी, कोलकाता और हरियाणा के कृषक इस केंद्र से बीज का उठाव कर रहे हैं।

नई प्रभेद के बीज से किसानों हो रहा फायदा : देसी रोहू, कामन कार्प और देसी भाकुर की तुलना में नई प्रजाति की जयंती रोहू, अमूर कार्प और उन्नत भाकुर किसानों के स्वाबलंबन के द्वार खोल दिए है। केंद्र के वैज्ञानिक बताते है कि जयंती रोहू का उत्पादन सामान्य रोहू की तुलना में 18 प्रतिशत अधिक है। जहां तक समय की बचत की बात है तो देसी रोहू की तुलना में 6 माह की जगह 4-5 माह ही तैयार होने में लगता है। इसी तरह नई प्रभेद की उन्नत भाकुर में 19-20 प्रतिशत व अमूल कार्प में 25-26 प्रतिशत की अधिक उत्पादन वृद्धि देखी जा रही है। इस दोनो प्रभेद में भी 3 माह समय की बचत हो रही है। उन्नत भाकुर 4 माह में तैयार हो रही है वही देसी में 7 माह का समय लगता था। अमूर कार्प सिर्फ 3-4 माह में तैयार हो रही है। जबकि स्थानीय कामन कार्प को तैयार होने में कम से कम 6 माह का समय लग जाता है।

साल के छह माह तक तैयार होता है बीज : कृषि विज्ञान केंद्र में इन तीन नई प्रभेद की मछलियों की बीज साल में फरवरी-सितंबर के बीच तैयार की जाती है। अंडे से मछली के पांच मिलीमीटर साइ•ा बच्चे निकलते है। दरअसल, इनको सपान यानी जीरा कहते हैं। इसका भरण पोषण नर्सरी में करते है। तीन से चार ह$फ्ते नर्सरी में रहने के बाद इनका साइ•ा 20 से 25 मिलीमीटर का हो जाता है, जिनको फ्राई यानी पौना भी कहते हैं। इसके बाद यह तीन माह तक बड़े पान्ड रखे जाते हैं, जहां 75 से 100 एमएम साइज के तैयार होते हैं। तब इनको तालाब में डाल दिया जाता है।। इनको ङ्क्षफगरङ्क्षलग यानी अंगुलिकाए कहा जाता है। पौना बीज यानी फ्राई आकार की मछली बीज लगभग 500 रुपये प्रति हजार और जीरा 800 रूपये प्रति 100 एमएल की दर से बा•ाार में बेचे जाते हैं। जबकि ङ्क्षफगरङ्क्षलग 300 प्रति किलोग्राम की दर से बेचा जाता है।जुलाई से अगस्त प्रजनन का सबसे अच्छा समय होता है। इन महीनों में मछली बीजों की •ाबरदस्त मांग रहती है।

बीज उत्पादन के लिए मिला है पुरस्कार : बताया गया कि यहां इन प्रभेद को लेकर किए गए प्रदर्शन में मिली सफलता को नेशनल फिशरी डेवलपमेंट बोर्ड हैदराबाद द्वारा विभिन्न सामाजिक चैनल के माध्यम से देश के कई राज्यों में प्रसारित भी किया गया है। इतना ही नही बीज उत्पादन में मिली कामयाबी के लिए कृषि विज्ञान केंद्र को तकनीकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान पटना की जोन 4 ओर से वर्ष 2022 में सर्वोच्च क्षेत्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।

कहते है वैज्ञानिक :
कृषि विज्ञान केंद्र के प्रधान व वरीय वैज्ञानिक डा. रामईश्वर प्रसाद बताते हैं कि आज के वक्त में यह व्यवसाय का$फी लाभकारी है। खासकर ग्रामीण युवकों के लिए रोजगार का सुनहरा अवसर है। पहले बीज के लिए दूसरे प्रदेश पर निर्भरता थी, लेकिन अब केंद्र में बीज उत्पादन शुरू होने से समय व पैसे की बचत हो रही है। बेरो•ागार ग्रामीण युवा और किसान मछली बीजोत्पादन का प्रशिक्षण लेकर इस व्यवसाय को अपने क्षेत्र में हीं शुरू कर बेहतर आमदनी प्राप्त कर सकते है। तीन साल में बेहतर परिणाम मिले हैं। जिले में दो सौ के करीब नए किसान इससे जुड़े हैं। दूसरी तर$फ अच्छी प्रजाति की मछलियों के बीज यहां उपलब्ध हो रही है तो मछली उत्पादन भी बेहतर होगा। इसके लिए किसानों को मछली पालन की नई तकनीकों की जानकारी प्रशिक्षण के माध्यम से दी जा रही है।

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