मुजफ्फरपुर: वंशीधर वृजवासी ने तिरहुत स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीतकर बिहार विधान परिषद के सदस्य बनने का गौरव हासिल किया है। राजनीति में आने से पहले वंशीधर एक शिक्षक नेता के रूप में जाने जाते थे। शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने उन्हें निलंबित कर दिया था, जिसके बाद उन्होंने निलंबित शिक्षक के तौर पर अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की। करीब 20 वर्षों तक वे शिक्षक नेता के रूप में शिक्षकों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे। उनकी कार्यशैली ने जहां शिक्षकों को प्रभावित किया, वहीं सरकार की नाराजगी भी बढ़ाई। बावजूद इसके, वंशीधर ने हार नहीं मानी और शिक्षकों के हक की लड़ाई जारी रखी। इसी संघर्ष और विश्वास के दम पर उन्होंने तिरहुत स्नातक निर्वाचन क्षेत्र का चुनाव जीता।
शिक्षक नेता से एमएलसी तक का सफर
वंशीधर ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में इस उपचुनाव में जीत दर्ज की। राजनीति में कदम रखने से पहले वे एक सरकारी स्कूल के शिक्षक थे। उन्होंने परिवर्तनकारी प्रारंभिक शिक्षक संघ के राज्य अध्यक्ष के रूप में अपनी भूमिका निभाई और अपनी बेबाकी के लिए पहचाने जाते हैं। उनकी यह स्पष्टवादी छवि ही उनकी पहचान बनी।
असली संघर्ष अब शुरू होगा
चुनाव जीतने के बाद वंशीधर ने कहा कि असली संघर्ष अब शुरू होगा। उन्होंने कहा, “पहले जो संघर्ष हुआ, वह केवल एक परछाईं थी। अब समाज को एक ऐसा नेता मिला है, जो नेता शब्द को चरितार्थ करता है।” वंशीधर ने यह भी कहा कि वह केवल सफेद कुर्ता-पजामा पहनकर नेता कहलाने वालों में से नहीं हैं। उनके अनुसार, “नेता वही होता है जो समाज के लिए नेक इरादे और मजबूत संकल्प के साथ काम करे।”
शिक्षकों के सहयोग से मिली जीत
वंशीधर ने खुलासा किया कि चुनाव लड़ने के लिए शिक्षकों ने लगभग 7 लाख रुपये का चंदा दिया। उन्होंने बताया, “मैं खाली झोला लेकर निकला था, लेकिन लोगों ने उस झोले को इतना भर दिया कि वह ओवरफ्लो हो गया। लोगों ने मुझे न केवल नोट बल्कि वोट भी दिया।” जीत के बाद वंशीधर उसी पैसे से मिठाई बांट रहे हैं और लोगों का आभार व्यक्त कर रहे हैं।
जनबल बनाम धनबल
एनडीए और जनसुराज पर निशाना साधते हुए वंशीधर ने कहा कि चुनाव में अधिकांश उम्मीदवारों ने धनबल पर भरोसा किया, लेकिन उनकी जीत जनबल का परिणाम है। उन्होंने जनसुराज को राजनीतिक व्यापारी बताते हुए कहा, “यह कोई पार्टी नहीं, बल्कि ईमान खरीदने वाला संगठन है। लेकिन मेरे पास पोस्टर या प्रचार सामग्री के लिए धनबल नहीं था। जो कुछ भी था, वह जनता का विश्वास और आशीर्वाद था।”
आगे भी जारी रहेगा संघर्ष
वंशीधर ने स्पष्ट किया कि उनकी यह लड़ाई यहीं समाप्त नहीं होगी। उन्होंने कहा, “मैंने शिक्षकों और नौजवानों के दम पर यह मुकाम हासिल किया है, और संघर्ष का यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा।”
उनकी इस जीत ने यह साबित कर दिया कि ईमानदारी और संघर्ष से कोई भी व्यक्ति राजनीतिक शिखर को छू सकता है।