बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर (पीके) की स्थिति अब रामायण के काकभुशुंडि के समान होती जा रही है। काकभुशुंडि, जो एक महान ऋषि थे, शाप के कारण कौवे का रूप धारण कर बैठे थे और लोग उनके प्रवचन को गंभीरता से नहीं सुनते थे, क्योंकि उनका रूप ही ऐसा था कि लोग उनकी बातों को हल्के में लेते थे। ठीक उसी तरह, प्रशांत किशोर का राजनीतिक भविष्य अब अनिश्चित और संघर्षमय दिखाई दे रहा है। जब भी वह राजनीति में कुछ कदम उठाते हैं, परिणाम अक्सर विपरीत ही आता है।
प्रशांत किशोर ने बिहार में हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा करके जनसुराज पार्टी की स्थापना की थी, यह उम्मीद थी कि उनकी पार्टी बिहार में राजनीतिक बदलाव ला सकेगी। लेकिन, हाल ही में बिहार विधानसभा की चार सीटों पर हुए उपचुनावों के नतीजों ने उनकी राजनीतिक स्थिति को और भी कमजोर कर दिया है। पार्टी में शामिल होने वाले नेता अब एक के बाद एक उसे छोड़कर जा रहे हैं, जिससे उनकी पार्टी की लोकप्रियता पर सवाल उठ रहे हैं।
इस बीच, पीके ने बीपीएससी परीक्षा रद्द करने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे छात्रों का समर्थन किया। उन्हें उम्मीद थी कि इससे वह युवाओं में अपनी पकड़ बना सकेंगे, लेकिन यह कदम उनके लिए और भी विवादों का कारण बन गया। जब छात्रों के प्रदर्शन के दौरान लाठीचार्ज हुआ, तो पीके का अचानक धरना स्थल छोड़ देना उनकी छवि को नुकसान पहुंचा गया। इसके बाद से उन्हें विपक्षी दलों और छात्रों की आलोचना का सामना करना पड़ा। पीके, जो एक समय छात्रों के बीच हीरो बनने आए थे, अब उनकी आलोचनाओं के केंद्र में हैं और उन्हें विलेन के रूप में देखा जा रहा है।
राजनीतिक दलों का आरोप और आलोचना
लाठीचार्ज के बाद, कई राजनीतिक दलों ने पीके पर हमला बोलते हुए उन्हें छात्र आंदोलन में विश्वासघात करने और भागने का आरोप लगाया। बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया कि पीके लाठीचार्ज के दौरान धरना स्थल से भाग गए थे, जबकि पप्पू यादव ने कहा कि पीके की वजह से छात्रों पर लाठीचार्ज हुआ। सत्ताधारी पार्टी जेडीयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने तो उन्हें राजनीतिक भगोड़ा तक कह डाला।इसके अलावा, पीके ने अपनी सफाई देते हुए कहा कि वह छात्रों को समझाने गए थे और बातचीत के लिए पांच छात्रों को मुख्य सचिव से मिलने को कहा था। उनका कहना था कि अगर बातचीत सकारात्मक रही तो आंदोलन की जरूरत नहीं थी, लेकिन छात्रों ने उनकी बातों को गलत तरीके से लिया। हालांकि, उनके इन शब्दों को भी छात्रों और विपक्षी दलों ने गंभीरता से नहीं लिया, जिससे उनकी छवि और भी बिगड़ी।
प्रशांत किशोर की राजनीति: क्या गलत हो रहा है?
आज बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर की स्थिति एक उधार लिए हुए विचारक या शिक्षक की तरह हो गई है, जो ज्ञान और अनुभव से परिपूर्ण होते हुए भी, किसी के लिए प्रभावशाली नहीं हैं। यह स्थिति काकभुशुंडि की तरह ही प्रतीत होती है, जो महान होते हुए भी, अपने रूप के कारण किसी के लिए प्रेरणा का स्रोत नहीं बन सके। पीके की राजनीतिक यात्रा लगातार असफलताओं और आलोचनाओं से घिरी हुई है, जिससे उनकी भविष्यवाणी और योजनाओं को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है।प्रशांत किशोर, जो पहले युवाओं के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए आए थे, अब विपक्षी दलों द्वारा निशाने पर लिए गए हैं। बिहार में उनकी राजनीति की दिशा अब स्पष्ट नहीं दिखती। क्या यह पीके का भटकाव है या विपक्ष उनके खिलाफ एक सोची-समझी रणनीति के तहत उन्हें निशाना बना रहा है, यह कहना कठिन है। लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि प्रशांत किशोर की राजनीतिक यात्रा को लेकर अब बहुत से सवाल खड़े हो गए हैं और उनकी स्थिति काकभुशुंडि जैसे पात्र की तरह हो गई है, जो अपनी ज्ञान की गहराई के बावजूद खुद को समझाने में नाकाम हो रहे हैं।