बिहार में उच्च शिक्षा से जुड़ी संस्थाओं की सक्रियता पर एक बार फिर सवाल उठे हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की देशव्यापी “विशेष स्वच्छता अभियान” में राज्य के केवल पांच संस्थानों ने भाग लिया है। इनमें IIT पटना, IIM बोधगया, चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ बिहार और मगध विश्वविद्यालय शामिल हैं। इस मुहिम का उद्देश्य शिक्षा परिसरों में स्वच्छता बढ़ाना, अनावश्यक दस्तावेज़ों और ई-वेस्ट का निपटान करना और कार्यालयों को अधिक सुव्यवस्थित बनाना था। लेकिन बिहार के दर्जनों विश्वविद्यालय और कॉलेज इस अभियान में शामिल नहीं हुए, जिससे राज्य की अकादमिक प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े हो गए हैं।
UGC द्वारा शुरू की गई यह मुहिम “स्वच्छता ही सेवा” अभियान का हिस्सा है, जिसका मकसद शैक्षणिक परिसरों को साफ, हरित और पारदर्शी बनाना है। आयोग ने सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को निर्देश दिया था कि वे 2 से 31 अक्टूबर तक परिसर की सफाई, फाइलों की छंटाई, इलेक्ट्रॉनिक कचरे का निपटान और पुराने रजिस्टरों को डिजिटाइज करने का काम करें। देशभर के कई प्रतिष्ठित संस्थानों — जैसे दिल्ली विश्वविद्यालय, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय — ने इस अभियान में सक्रिय भागीदारी दिखाई। लेकिन बिहार से बहुत कम संस्थानों का जुड़ना यह दर्शाता है कि यहां स्वच्छता और प्रशासनिक सुधारों को लेकर अभी भी पर्याप्त जागरूकता की कमी है।
UGC अधिकारियों ने कहा है कि इस बार जो संस्थान पीछे रह गए, उनसे अगली बार जवाबदेही तय की जाएगी। आयोग ने राज्य सरकारों और विश्वविद्यालय प्रशासन से भी अपील की है कि वे छात्रों को इस प्रकार के अभियानों में शामिल करें ताकि स्वच्छता को एक व्यवहारिक आंदोलन का रूप दिया जा सके। शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि स्वच्छ परिसर न केवल सीखने के माहौल को बेहतर बनाते हैं, बल्कि छात्रों में जिम्मेदारी और अनुशासन की भावना भी पैदा करते हैं। आने वाले समय में यदि बिहार के विश्वविद्यालय इस दिशा में गंभीरता दिखाते हैं, तो यह न केवल उनके शैक्षणिक वातावरण को सुधारेगा बल्कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था की छवि को भी मजबूत करेगा।

