RJD की बढ़ती मुश्किलें।नाराज़ हुए शरद यादव के बेटे शांतनु यादव ने कहा कि राजनीति में “झाल बजाने” नहीं आए हैं, बल्कि पिता की विरासत को आगे बढ़ाने और अपने हक के लिए डटे रहने आए हैं।
पटना:बिहार की राजनीति में विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं, लेकिन राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के लिए यह चुनाव चुनौतियों से भरा साबित हो रहा है। हाल ही में दिवंगत समाजवादी नेता शरद यादव के बेटे शांतनु यादव को मधेपुरा सीट से टिकट न दिए जाने से पार्टी में बवाल मचा हुआ है। शांतनु ने शनिवार को एक वीडियो संदेश जारी कर अपनी नाराजगी जाहिर की, जिसमें उन्होंने कहा कि वे राजनीति में “झाल बजाने” नहीं आए हैं, बल्कि पिता की विरासत को आगे बढ़ाने और अपने हक के लिए डटे रहने आए हैं। यह घटना RJD की आंतरिक कलह को उजागर करती है, जो तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली पार्टी के लिए बड़ी परेशानी का सबब बन रही है।
शरद यादव, जो समाजवाद के बड़े प्रतीक थे, ने 2022 में अपनी लोकतांत्रिक जनता दल (LJD) को RJD में विलय कर दिया था। इसे उस समय ‘दो भाइयों का मिलन’ कहा गया था, और शरद यादव के परिवार को टिकट का वादा किया गया था। लेकिन शरद यादव के निधन के बाद उनके बेटे शांतनु को पहले लोकसभा चुनाव में और अब विधानसभा में टिकट से वंचित कर दिया गया। शांतनु ने अपने वीडियो में इसे “राजनीतिक षड्यंत्र” करार दिया और कहा कि यह न सिर्फ उनकी हार है, बल्कि समाजवाद की हार है। उन्होंने जोर देकर कहा, “मेरा विरोध सिर्फ आवाज उठाना नहीं, बल्कि जिंदा होने और अपने हक के लिए डटे रहने का सबूत है।” यह बयान बिहार की यादव राजनीति में नई दरार पैदा कर सकता है, जहां परिवारवाद और विरासत की लड़ाई हमेशा से प्रमुख रही है।
RJD, जो महागठबंधन का प्रमुख हिस्सा है, पहले से ही 2024 लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन से जूझ रही है, जहां वह सिर्फ 4 सीटों पर सिमट गई थी। अब विधानसभा चुनाव में टिकट डेनियल से विद्रोह की लहर उठ रही है। पहले चरण की 121 सीटों के लिए नामांकन बंद होने के साथ ही NDA और महागठबंधन दोनों में बागी उम्मीदवारों की संख्या बढ़ गई है। RJD ने कांग्रेस और अन्य सहयोगियों को सीटें छोड़ने का फैसला किया है, लेकिन आंतरिक कलह से पार्टी की एकता खतरे में है।
बिहार की राजनीति में यह घमासान NDA के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। वहीं, मधेपुरा जैसी यादव बहुल सीटों पर यादव बनाम यादव की लड़ाई पहले से ही देखी जा चुकी है। RJD की आंतरिक कलह से बागी उम्मीदवार वोट काट सकते हैं, जो NDA को मजबूत स्थिति में ला सकता है।
कुल मिलाकर, शांतनु यादव का विद्रोह RJD के लिए एक चेतावनी है कि विरासत और वादों की अनदेखी महंगी पड़ सकती है। बिहार चुनाव में जहां जातीय समीकरण और गठबंधन की भूमिका अहम है, वहां RJD की ये परेशानियां चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकती हैं। क्या तेजस्वी यादव इस संकट से उबर पाएंगे, या यह महागठबंधन की हार का कारण बनेगा? आने वाले दिन बताएंगे।

