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ऋषि जुकरबर्ग का आभासी संसार

ध्रुव गुप्त

द्वापर युग के अंतिम चरण में एक प्रतापी ऋषि थे जो समाधि की अवस्था में न सिर्फ दुनिया के किसी कोने में रह रहे व्यक्ति से संदेशों का आदान-प्रदान कर लेते थे, बल्कि उसका साक्षात दर्शन करने में सक्षम थे। जब वे मरणासन्न हुए तो उनके एक प्रिय शिष्य ने पूछा – ‘गुरुवर, आने वाले कलियुग में जब तप की शक्ति जाती रहेगी तब क्या दूरस्थ लोगों से संवाद अथवा साक्षात्कार के सारे मार्ग बंद हो जाएंगे ?’

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ऋषि ने कहा – ‘हे वत्स, कलियुग के अंतिम चरण में मैं सात समंदर पार के किसी देश में जुकरबर्ग नामक एक ऋषि के रूप में अवतरित होकर वसुंधरा के दूरस्थ लोगों को जोड़ने के लिए फेसबुक या मुखपोथी नामक एक आभासी संसार की रचना करूंगा। पहले मोबाइल और लैपटॉप नामक छोटे-छोटे यंत्रों के माध्यम से इससे लोग जिज्ञासावश ही जुड़ेंगे, लेकिन कालांतर में वे घर-परिवार-समाज से कटकर बस उसी के होकर रह जाएंगे। अहर्निश उसके आगे समाधि की अवस्था में बैठकर अपनी रचनाओं, भावनाओं, शुभकामनाओं, कुंठाओं और विषों का परस्पर आदान प्रदान करेंगे। मित्रों के ‘लाइक्स’ और ‘कमेंट्स’ पाकर आह्लादित होंगे और और उनकी कमी आने से मर्माहत। कुछ अपने अधूरे प्रेम की व्यथा बांटकर पाठकों को रुलाएंगे, कुछ अपनी मूर्खताओं से हंसाएंगे, कुछ दार्शनिक और नीतिगत प्रवचनों से लोगों के ज्ञान-चक्षु खोलने के निरर्थक प्रयास करेंगे, कुछ राजनीतिक कलुष फैलाकर इसे गंदा करेंगे तो कुछ मिथ्या सूचनाएं प्रसारित कर समाज में हिंसा और दंगे भड़कायेंगे। वहां कुछ भोले-भाले लोग ऐसे भी होंगे जो शुभ सवेरा, शुभ दोपहर, शुभ संध्या और शुभ रात्रि के अभिवादनों, देवी-देवताओं, स्वजनों-परिजनों के चित्रों के अविरल प्रवाह से कभी करुण तो कभी वितृष्णा रस की उत्पत्ति करेंगे। लोग उसका अच्छा या बुरा जैसा प्रयोग करें, उस दिव्य मंच पर जो एक बार आ गया, वह चाहकर भी उसके मायाजाल से निकल नहीं सकेगा।’

शिष्य ने जिज्ञासा की – ‘प्रभु, मुखपोथी पर संपर्क शाब्दिक ही होगा या लोग अपने दूरस्थ मित्रों को साक्षात देख और उनसे बातचीत भी कर सकेंगे ?’

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ऋषिवर ने कहा कहा – ‘शिष्य, जिस दिव्य दृष्टि के लिए हमें आजीवन साधना करनी पड़ी है, कलियुग में लोग उंगलियों के स्पर्श मात्र से वह प्राप्त कर लेंगे। मुखपोथी से जुड़े दो और आभासी मंच होंगे – मेसेंजर और व्हाट्सएप। उनका उद्देश्य आत्मीयों का दर्शन और संवाद ही होगा, लेकिन कलियुग की प्रवृत्ति के अनुरूप उसका दुरुपयोग भी कम नहीं होगा। कुछ अधम कलियुगी लोग इसका उपयोग अपने मनोरंजन के लिए लड़के या लड़कियां पटाने नें करेंगे। इसपर अकेलेपन से ऊबे युवा, दांपत्य की एकरसता से थके अधेड़ और अकेले वृद्धजन अपनी मित्र सूची की ठीक-ठाक दिखने वाली स्त्रियों की संदेश मंजूषाओं में या व्हाट्सएप पर अनामंत्रित जाकर प्रणय निवेदन किया करेंगे। कुछ कवि होंगे जो मौलिक या चोरी की प्रेम कविताएं भेजकर उन्हें लुभाएंगे। एक से बात नहीं बनी तो दूसरी। दूसरी से नहीं तो तीसरी। कभी-कभी एक साथ कई-कई भी। ऐसे प्राणियों में अगर धैर्य और निर्लज्जता है तो यहां स्त्री-पुरुष के मध्य आकर्षण भी घटित होगा, प्रेम भी और बात बढ़ी तो यौनोन्माद भी। पृथ्वीलोक को जनसंख्या विस्फोट से बचाने के लिए इस आभासी संसार में बस बच्चे पैदा करने का कोई प्रावधान नहीं रखा जाएगा।’

शिष्य आह्लादित हुआ – ‘अद्भुत गुरुश्रेष्ठ, मैं तो तप और दिव्य दृष्टि से रहित कलियुग का नाम सुनकर ही भयभीत हुआ जा रहा था। अब आश्वस्त हूं कि आपके आभासी संसार के सहारे मेरा कलियुगी जीवन बिना तप के भी आनंद में कट जाएगा।’

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