मेहजबीं
बंद गली का आखिरी मकान
जिसमें दीवारें नहीं हैं
टुपकी पैबंद लगे एक दो पर्दे टांगें हैं उसमें
इन मकानों में पर्दे का उद्देश्य
नज़रे बंद से बचना नहीं है ,औरतों को ढकना नहीं है
ग़रीब की किसी किस्म की इज्ज़त नहीं होती
इसलिए
पर्दा क़र्ज़दार आंखों पर टंगा है
ग़रीब की हड्डी से भी कमज़ोर हैं उसकी आंखें
वो ऊपर नहीं उठती
कब उधार वाला,क़र्ज़ वाला
पर्दा उठाकर इज्ज़त उतार दे
इसी ख़ौफ में सहमी सहमी रहती हैं
ग़रीब की आंखें
ग़रीब की आंखें ढंकी रहें
बेशक तन पर ढंग के लत्ते न हों
गर्मी बरसात में छत न हो
भिड़ी गली के इज्ज़तदार बंद मकानों में
दरों दीवार हैं,
लेकिन इनमें छज्जे नहीं हैं
उन मकानों की औरतों के तन का भी पर्दा है
आवाज़ का भी पर्दा है, चेहरे का भी पर्दा है
ज़ेवर का भी पर्दा है, कपड़े का भी पर्दा है
ज़मीन से भी पर्दा है, आसमान से भी पर्दा है

