Nationalist Bharat
ब्रेकिंग न्यूज़

Supreme Court: संविधान से धर्मनिरपेक्ष-समाजवाद शब्द हटाने की मांग वाली याचिकाएं खारिज

Supreme Court: संविधान से धर्मनिरपेक्ष-समाजवाद शब्द हटाने की मांग वाली याचिकाएं खारिज

NEW DELHI:संविधान से धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद शब्द हटाने की मांग वाली याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। ये याचिकाएं पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन और अन्य के द्वारा दायर की गईं थी। गौरतलब है कि साल 1976 में पारित हुए संविधान संशोधन के तहत धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद जैसे शब्दों को जोड़ा गया था। बीते शुक्रवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिका को खारिज करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ‘इस याचिका पर विस्तार से सुनवाई करने की जरूरत नहीं है।’ अमर उजाला डॉट कॉम के मुताबिक़ सीजेआई ने कहा कि ‘समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष जैसे शब्द 1976 में संविधान संशोधन के जरिए जोड़े गए थे और इनसे 1949 में अपनाए गए संविधान पर कोई फर्क नहीं पड़ता।’

इंदिरा गांधी सरकार में जोड़े गए थे ये शब्द
बता दें कि 1976 में इंदिरा गांधी सरकार ने 42वें संवैधानिक संशोधन करके संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ शब्द शामिल किए थे। इस संशोधन के बाद प्रस्तावना में भारत का स्वरूप ‘संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य’ से बदलकर ‘संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य’ हो गया था। सुनवाई के दौरान अपनी दलील देते हुए याचिकाकर्ता अधिवक्ता विष्णु कुमार जैन ने नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के एक हालिया फैसले का हवाला दिया। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 39(बी) पर 9 जजों की पीठ के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि उस फैसले में शीर्ष कोर्ट ने “समाजवादी” शब्द की उस व्याख्या पर असहमति जताई जिसे शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति वी आर कृष्णा अय्यर और ओ चिन्नप्पा रेड्डी ने प्रतिपादित किया था।

सुप्रीम कोर्ट ने संशोधन का किया था बचाव
इस पर सीजेआई खन्ना ने कहा कि भारतीय संदर्भ में हम समझते हैं कि भारत में समाजवाद अन्य देशों से बहुत अलग है। हम समाजवाद का मतलब मुख्य रूप से एक कल्याणकारी राज्य समझते है। कल्याणकारी राज्य में उसे लोगों के कल्याण के लिए खड़ा होना चाहिए और अवसरों की समानता प्रदान करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने 1994 के एसआर बोम्मई मामले में “धर्मनिरपेक्षता” को संविधान की मूल संरचना का हिस्सा माना था। वकील जैन ने आगे तर्क दिया कि संविधान में 1976 का संशोधन लोगों को सुने बिना पारित किया गया था क्योंकि यह आपातकाल के दौरान पारित किया गया था। इन शब्दों को शामिल करने का मतलब लोगों को विशिष्ट विचारधाराओं का पालन करने के लिए मजबूर करना होगा। उन्होंने कहा कि जब प्रस्तावना एक कट-ऑफ तारीख के साथ आती है, तो इसमें नए शब्द कैसे जोड़े जा सकते हैं? पीठ ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 368 संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति देता है और इसके विस्तार में प्रस्तावना भी आती है।

अदानी की गिरफ्तारी करके जेपीसी का हो गठन: डॉ अखिलेश प्रसाद सिंह

Nationalist Bharat Bureau

महंगाई,रसोई गैस की बढ़ती कीमतों के खिलाफ तथा महिलाओं के लिए न्याय और अधिकारों की रक्षा के लिए आंदोलन तेज होगा-मीना तिवारी

Bihar Teacher Recruitment: बिहार में 3 लाख शिक्षकों की बहाली का रास्ता साफ! नई नियमावली पर कल लग सकती है मुहर

आज फिर से हाथ जोड़ने लगे CM नीतीश

Nationalist Bharat Bureau

644 करोड़ की लागत से नव निर्मित विधुत उपकेंद्र राष्ट्र को समर्पित

मिनी स्कर्ट और कटी फटी जींस पहनकर मंदिर आने पर प्रतिबंध,लोगों ने किया स्वागत

महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में चुनाव का बज सकता है बिगुल,3 बजे चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस

70th BPSC :प्रदर्शन कर रहे अभ्यर्थियों पर लाठीचार्ज, पुलिस ने दौड़ा दौड़ाकर पीटा

Nationalist Bharat Bureau

हाई कोर्ट ने जब्त वाहन छोड़ने का दिया आदेश, सरकार पर 10,000 रुपए मुकदमा-खर्च

Nationalist Bharat Bureau

भारत दुनिया को देगा खाना अगर…

Leave a Comment