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वाराणसी पुलिस और वकील के बीच टकराव: घायल वकील निकले केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के भाई के दामाद, लेकिन सन्नाटा क्यों?

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में शनिवार रात एक वकील की पिटाई ने एक बार फिर पुलिस और आम नागरिक (इस मामले में वकील) के बीच रिश्तों की संवेदनशीलता को उजागर कर दिया है। लेकिन जब यह पता चला कि घायल वकील केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के भाई का दामाद है, तब मामला और गहराता नजर आया। हैरानी की बात ये है कि इस खुलासे के बावजूद, पुलिस महकमे में कोई हलचल नहीं दिख रही और न ही किसी सस्पेंशन या गिरफ्तारी की खबर आई है।

घटना का संक्षेप में विवरण:

शनिवार की रात लगभग 8 बजे भेलूपुर थाना क्षेत्र के रथयात्रा चौराहे पर एक वकील – शिव प्रताप सिंह – को पुलिस ने रोकने की कोशिश की। आरोप है कि इंस्पेक्टर (क्राइम) गोपाल कन्हैया ने उन्हें कथित तौर पर “वन-वे” में जाने से रोका। इसी दौरान कहासुनी हुई और बात इतनी बढ़ी कि पुलिस ने वकील की सरेराह पिटाई कर दी। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, वकील को इतने ज़ोर से मारा गया कि उनका हाथ टूट गया और सिर से खून बहने लगा। उन्हें तुरंत बीएचयू ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया गया।

छुपा संबंध:

इस मामले में नया मोड़ तब आया जब कुछ स्थानीय वकीलों और पत्रकारों ने दावा किया कि शिव प्रताप सिंह, केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के भाई के दामाद हैं। यह जानकारी सोशल मीडिया पर भी वायरल हो गई, जिसमें दावा किया गया कि वकील का विवाह गिरिराज सिंह के भाई की बेटी से हुआ है। हालांकि, अभी तक न गिरिराज सिंह और न ही उनके परिवार की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने आई है।

वकीलों का गुस्सा और फिर अचानक सन्नाटा:

इस घटना के बाद वाराणसी कचहरी में वकीलों ने तीखा विरोध दर्ज किया। एक पुलिसकर्मी – सब इंस्पेक्टर मिथिलेश प्रजापति – को भी वकीलों ने पकड़कर पीटा। कोर्ट परिसर में जमकर हंगामा हुआ। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से कुछ ही दिनों में यह विरोध शांत हो गया। वकील संघों ने बैठकें कीं, ज्ञापन सौंपे, लेकिन जिस तीव्रता से उन्होंने शुरुआत की थी, वैसा दबाव कायम नहीं रह सका।

मौन क्यों?

अब बड़ा सवाल ये उठता है कि अगर वकील वाकई में केंद्रीय मंत्री के परिवार से जुड़ा है, तो सरकार या स्थानीय प्रशासन अब तक खामोश क्यों है? क्या सत्ता से जुड़ाव होने के बाद भी न्याय नहीं मिल सकता? या फिर, यह खामोशी किसी “समझौते” का संकेत है?

पुलिस की ओर से कोई ठोस कार्रवाई न होना, इंस्पेक्टर गोपाल कन्हैया का आज तक ड्यूटी पर बने रहना, और मामले की लीपापोती — यह सब कुछ सवालों के घेरे में है।

मीडिया की भूमिका भी सवालों में:

इस खबर को लेकर कुछ यूट्यूब चैनलों और सोशल मीडिया पेजों ने जरूर रिपोर्टिंग की है, लेकिन मुख्यधारा के बड़े न्यूज चैनल और अखबार इस खबर को या तो नजरअंदाज कर रहे हैं, या बहुत सतही तरीके से छाप रहे हैं। क्या इसकी वजह भी राजनीतिक दबाव है?


निष्कर्ष:
घटना सिर्फ एक वकील की पिटाई की नहीं है, ये मामला सिस्टम की संवेदनहीनता, सत्ता के दवाब और आम आदमी के हक़ की कहानी है। अगर केंद्रीय मंत्री से जुड़े व्यक्ति को भी न्याय पाने के लिए संघर्ष करना पड़े, तो सोचिए आम जनता का क्या हाल होता होगा।

अब देखना ये है कि क्या सरकार या खुद गिरिराज सिंह आगे आकर मामले में पारदर्शिता लाते हैं या यह केस भी धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में चला जाएगा।

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