राज्यभर के मान्यता प्राप्त मदरसों में कार्यरत शिक्षकों ने अपने अधिकारों की मांग को लेकर पटना में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी है। गांधी मैदान स्थित धरना स्थल पर सैकड़ों शिक्षक बीते कई दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं। उनकी प्रमुख मांग है – सेवा का नियमितीकरण, लंबित वेतन का भुगतान, और राजकीय शिक्षकों के समान सुविधाएं।
इस आंदोलन में बिहार के अलग-अलग जिलों से आए मदरसा शिक्षक शामिल हैं, जिनका कहना है कि वे वर्षों से अल्प मानदेय पर काम कर रहे हैं, लेकिन सरकार ने अब तक उन्हें शिक्षा व्यवस्था का हिस्सा मानने में गंभीरता नहीं दिखाई है।
सरकार से टूट रहा भरोसा
धरना में बैठे एक शिक्षक, मौलाना नसीम अहमद, जो पिछले 20 वर्षों से एक मान्यता प्राप्त मदरसे में पढ़ा रहे हैं, कहते हैं,
“हमने कभी शिक्षा को व्यापार नहीं बनाया। बच्चों को तालीम देने का जिम्मा उठाया, लेकिन सरकार ने हमारे साथ न्याय नहीं किया। हर साल वादे होते हैं, लेकिन न वेतन मिलता है, न सम्मान।”
प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि शिक्षा विभाग ने कई बार वेतन भुगतान का आश्वासन दिया, लेकिन अब तक हजारों शिक्षकों को पिछले छह से आठ महीनों से मानदेय नहीं मिला है।
प्रमुख मांगें
शिक्षकों की भूख हड़ताल के दौरान जो मांगे रखी गई हैं, वे इस प्रकार हैं:
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मान्यता प्राप्त मदरसा शिक्षकों का नियमितीकरण
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लंबित वेतन का तत्काल भुगतान
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समान कार्य के लिए समान वेतन नीति लागू करना
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पेंशन, बीमा और चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करना
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मदरसों के प्रशासनिक ढांचे को मजबूत करना
स्वास्थ्य पर पड़ रहा असर
धरना स्थल पर कुछ शिक्षकों की तबीयत बिगड़ने की खबर है। एक शिक्षक को बेहोशी की हालत में पीएमसीएच अस्पताल में भर्ती कराया गया। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यदि सरकार ने जल्द समाधान नहीं निकाला, तो वे आमरण अनशन की ओर बढ़ सकते हैं।
राजनीतिक चुप्पी पर सवाल
शिक्षकों ने सत्ताधारी दल पर निशाना साधते हुए कहा कि राजनीतिक दलों को सिर्फ चुनावों के समय मदरसों की याद आती है, लेकिन उनके अस्तित्व, सुविधाओं और अधिकारों पर कोई ठोस नीति नहीं बनाई जाती। कई संगठनों ने भी इस आंदोलन को समर्थन दिया है और सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है।
सरकार की प्रतिक्रिया का इंतजार
अब तक राज्य सरकार या शिक्षा विभाग की ओर से कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालाँकि सूत्रों की मानें तो सरकार इस विषय पर आंतरिक चर्चा कर रही है और जल्द ही एक प्रतिनिधिमंडल को वार्ता के लिए भेजा जा सकता है।
निष्कर्ष
मान्यता प्राप्त मदरसों के शिक्षकों की यह भूख हड़ताल केवल वेतन या नियमितीकरण की मांग नहीं है, बल्कि यह उस शैक्षणिक उपेक्षा के खिलाफ आवाज है, जो वर्षों से चली आ रही है। अब देखना यह होगा कि सरकार इस गंभीर आंदोलन को कितना गंभीरता से लेती है और कब तक इन शिक्षकों की आवाज़ सत्ता के गलियारों तक पहुँच पाती है।

