बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने राज्य की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। कभी बिहार की सबसे बड़ी राजनीतिक शक्ति रही राजद इस बार मात्र 25 सीटों पर सिमट गई, जिसके बाद पार्टी में असंतोष खुलकर सामने आने लगा है। तेजस्वी यादव की लगातार चुप्पी और बयानबाज़ी से दूरी ने टूट की आशंकाओं को और बढ़ा दिया है। इसी बीच लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य द्वारा पार्टी और परिवार छोड़ने के फैसले ने यादव परिवार की अंदरूनी खींचतान को उजागर कर दिया है।
करारी हार के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं में भारी नाराज़गी देखी जा रही है। यह स्थिति राजद के लिए पहले भी खतरनाक साबित होती रही है। 2010 और 2014 में बड़े स्तर पर हुए विभाजन ने पार्टी को गहरी चोट पहुंचाई थी। खासतौर पर 2014 में 13 विधायकों के एक साथ अलग हो जाने से राजद का राजनीतिक आधार हिल गया था। इस बार भी कई विधायकों के पाला बदलने की चर्चा तेज हो गई है।
राजद के लिए चुनौतियाँ यहीं खत्म नहीं होतीं। पिछले कुछ वर्षों में कई वरिष्ठ नेता और विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं। हालिया हार के बाद यह असंतोष अब अंदरूनी संकट का रूप ले चुका है। चुनावी नतीजों ने साफ कर दिया है कि तेजस्वी यादव के सामने सबसे बड़ी परीक्षा अब पार्टी को एकजुट रखने और विश्वास बहाल करने की है। मौजूदा परिस्थिति में राजद टूट के खतरे से जूझ रहा है, जिसे नकारा नहीं जा सकता।

