पटना: बिहार में आशा और आशा फैसिलिटेटर कार्यकर्ताओं ने नीतीश कुमार सरकार और केंद्र की मोदी सरकार पर मासिक मानदेय और कर्मचारी दर्जे की मांग को लेकर दबाव बढ़ा दिया है। बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ की अध्यक्ष शशि यादव के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने 12 अगस्त को गर्दनीबाग के गेट पब्लिक लाइब्रेरी में गुलाबी साड़ी पहनकर विशाल प्रदर्शन की घोषणा की है। इस महाजुटान का उद्देश्य सरकार की कथित “चालाकी” का भंडाफोड़ करना और आशा कार्यकर्ताओं को पूर्ण मासिक मानदेय कर्मी का दर्जा दिलाना है।
सरकार की घोषणा और कार्यकर्ताओं का असंतोष
हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आशा कार्यकर्ताओं का मासिक प्रोत्साहन राशि 1,000 रुपये से बढ़ाकर 3,000 रुपये और ममता कार्यकर्ताओं का प्रति प्रसव मानदेय 300 रुपये से बढ़ाकर 600 रुपये करने की घोषणा की थी। हालांकि, आशा कार्यकर्ता संघ इसे “छोटी जीत” मानते हुए इसे अपर्याप्त और सरकार की चालाकी का हिस्सा बता रहा है। शशि यादव ने आरोप लगाया कि सरकार ने जानबूझकर “मासिक मानदेय” शब्द का उपयोग करने से परहेज किया और इसके बजाय “प्रोत्साहन राशि” शब्द का इस्तेमाल किया, जो कार्यकर्ताओं की स्थायी कर्मचारी दर्जे की मांग को कमजोर करता है।शशि यादव ने कहा, “पांच दिन की हड़ताल, 9 जुलाई की राष्ट्रीय हड़ताल और स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे के लगातार घेराव के बाद सरकार ने यह घोषणा की है। लेकिन यह स्वागत योग्य नहीं, बल्कि धोखा है। हमारी मांग 21,000 रुपये मासिक मानदेय और स्वास्थ्य विभाग में कर्मचारी का दर्जा है।”
केंद्र सरकार पर भी निशाना
आशा कार्यकर्ताओं ने केंद्र की मोदी सरकार पर भी निशाना साधा है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत प्रस्तावित 3,500 रुपये मासिक राशि को लागू करने में देरी का आरोप लगाते हुए कार्यकर्ताओं ने कहा कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर “कुंडली मारकर बैठी है।” शशि यादव ने चेतावनी दी कि आगामी प्रदर्शन में केंद्र और राज्य सरकार दोनों को घेरने की रणनीति बनाई जाएगी।
12 अगस्त का महाजुटान
12 अगस्त को गर्दनीबाग में होने वाले इस प्रदर्शन में हजारों आशा और आशा फैसिलिटेटर कार्यकर्ताओं के शामिल होने की उम्मीद है। कार्यकर्ताओं ने गुलाबी साड़ी को अपनी एकजुटता का प्रतीक बनाया है और इसे “महाजुटान” का रूप देने की योजना बनाई है। शशि यादव ने कहा, “हमारी लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक हमें पूर्ण मासिक मानदेय और कर्मचारी का दर्जा नहीं मिलता। नीतीश सरकार और मंगल पांडे की चालाकी नहीं चलेगी।”
कार्यकर्ताओं की मांगें
आशा और आशा फैसिलिटेटर की प्रमुख मांगें निम्नलिखित हैं:
21,000 रुपये मासिक मानदेय।
स्वास्थ्य विभाग में स्थायी कर्मचारी का दर्जा।
रिटायरमेंट के बाद 10 लाख रुपये का एकमुश्त लाभ और पेंशन योजना।
कोविड-19 महामारी के दौरान किए गए कार्यों का बकाया भुगतान।
सरकार का रुख और विपक्ष
नीतीश सरकार ने अपनी घोषणा को ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने की दिशा में एक कदम बताया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि आशा और ममता कार्यकर्ताओं ने स्वास्थ्य सेवाओं में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिसे सम्मान देने के लिए यह वृद्धि की गई है। हालांकि, विपक्षी दल, विशेष रूप से CPI(ML) और RJD, ने इस कदम को “चुनावी हथकंडा” करार दिया है।
आशा और आशा फैसिलिटेटर कार्यकर्ताओं का यह आंदोलन बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं और श्रमिक अधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है। 12 अगस्त का महाजुटान न केवल नीतीश सरकार के लिए बल्कि केंद्र सरकार के लिए भी एक बड़ा दबाव साबित हो सकता है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि वे अपनी मांगों को लेकर तब तक लड़ाई जारी रखेंगे जब तक उनकी सभी मांगें पूरी नहीं हो जातीं।

